जीवन संगीत
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक । अरुण अतृप्त
पल पल घटते रात दिन
कर कोई कछु न पाये
नीरस ऐसे जन्म का
कोई नहीँ है उपाय ।।
पल पल घटते दिन
को देख कर करो न
कोई विलाप
हाय दैनंदिनी हो गई
क्षण ही में बेकार ।।
कितनी राशि धन सहित
जोड़े हो श्रीमन्त
तो भी जीवन को रहे
ठूंठ सम रघुबन्त ।।
जब पति हो आलसी
पत्नी बनती कुल तथ्य
तभी चले रथ पाओंनो
वरना सब कछु है व्यर्थ।।
आये थे सो चले गये
दिखा दिखा कर सान
जो तो से मिल कर गया
उसकी मदद महान
भूलें से ना भूलिए
कृपा जो हुई हे आप पर
अकृतज्ञता मनुज निकृष्ट है
जे लीजो तुम ठान