जीवन शैली का स्वास्थ्य पर प्रभाव
जीवन शैली का स्वास्थ्य पर प्रभाव
भारतीय प्राचीन जीवन शैली का विकास दुर्गम जीवन शैली से सरल जीवन पद्धति की ओर हो रहा है| जीवन शैली में परिवर्तन कई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे रहा है |श्रम साध्य जीवन पद्धति जीवन को कठिन बनाती है, वहीं भौतिकवादी प्रवृत्ति एवं मशीनीकरण जीवन को सरल बनाता है| प्राचीन जीवन शैली तप, त्याग, मानसिक चिंतन एवं सीमित संसाधनों में जीवन व्यतीत करने का प्रयास था,वही आधुनिक जीवन शैली भौतिक सुख -समृद्धि एवं सरलता से कठिनाइयों पर पार पाने का प्रयास है| प्राचीन जीवन पद्धति पतंजलि योग शास्त्र की सतत अनुयायी है,जबकि आधुनिक जीवन शैली योग शास्त्र के पालन के लिए प्रचार प्रसार के माध्यमों पर निर्भर है |
दिनचर्या
प्राचीन भारत की दिनचर्या सूर्योदय पूर्व जागृत होना, स्नान,ध्यान,पौष्टिक आहार, व्यायाम,शारीरिक व मानसिक तनाव रहित रहना,प्रकृति से निकटता, तप और त्याग पर आधारित थी| यह जीवन पद्धति आजीविका हेतु कृषि एवं पशुपालन, अनुसंधान शस्त्र एवं शास्त्रों सम्बंधित, एवं स्वस्थ्य निद्रा लेने की एक सतत प्रक्रिया थी, अतः दीर्घायु होने की संभावना 100 वर्षों तक होती थी| मात्र संक्रामक रोगों का प्रभाव या प्राकृतिक आपदा मृत्यु केसंभावित प्रमुख कारण थे| आयुर्वेद चिकित्सा अपनी पराकाष्ठा पर थी, नीरोगी काया स्वस्थ जीवन शैली का प्रथम सोपान थी |
पराधीनता के वर्षों में हमारी सांस्कृतिक विरासत पर अनवरत कुठाराघात होता रहा,भारतीय जीवन पद्धति दकियानुसी,अंधविश्वास का प्रतीक थी,यह प्रमुखता से प्रचारित किया गया, इस प्रकार सु संस्कृत वैज्ञानिक जीवन पद्धति का पराभव हुआ |भारतीय प्राचीन जीवन पद्यति हास्य का माध्यम बन गई यह अत्यंत क्षोभ का विषय था |
आधुनिक जीवन पद्धति अनेक संस्कृतियों का मिश्रण है,इस पद्धति में इस्लामिक संस्कृति के साथ साथ क्रिश्चियन संस्कृति का प्रभाव भी है,मूल रूप से भारतीय संस्कृति सीमित दायरे में जीवित है
| आधुनिक जीवन पद्धति में उठने सोने का समय,भोजन का समय व्यायाम एवं साधना का समय निर्धारित नहीं होता है| इसके लिए प्रातः उठना, स्वास्थ्य वर्धक निद्रा आवश्यक नहीं है |वर्तमान समय में प्रकृति से निकटता अनिवार्य नहीं है| जीवन शैली को संशोधित करके आरामदायक जीवन शैली में बदलाव किया जा रहा है, जो संतोषजनक नहीं कहा जा सकता |
स्वस्थ्य जीवन शैली के लिए सबसे आवश्यक योग ध्यान एवं व्यायाम,आहार कहा गया है, जैसा अन्न वैसा मन तथा स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है कहा गया है|
आधुनिक जीवन शैली प्रतिदिन देर तक निद्रा, आलस्य,रुचि कर तैलिय गरिष्ठ भोजन,व्यसन, तनावपूर्ण जीवन जीने का परिचायक बन गई है| शिक्षित व्यक्ति भी अनेको चयापचय संबंधी रोगों से ग्रस्त होते जा रहे हैं| अशिक्षित व्यक्तियों को ज्ञात ही नहीं होता कि वह किस रोग से ग्रसित हो रहे हैं|
आरामदायक सरल जीवन पद्धति अनेक रोगों को जन्म देती है, जैसे मधुमेह, मोटापा,हृदय रोग,उच्च रक्तचाप,श्वसन संबंधी रोग,पक्षाघात, कैंसर, यकृत संबंधी रोग,श्वसन सम्बंधित रोग, हृदयाघात,दमा, कुपोषण,उदर संबंधी रोग, अवसाद चिंता या तनाव मानसिक रोग आदि |
21वीं सदी में लोगों के जीवन जीने का सलीका आधुनिकता से संबंधित है| प्रौद्योगिकी में विकास, वैश्वीकरण, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मानदंडों में परिवर्तन आधुनिक जीवन शैली का प्रमुख अंग बन गया है |
प्रौद्योगिकी में स्मार्टफोन,टैबलेट और लैपटॉप के आने से संचार सरल व तीव्र गति का हो गया है| वैश्विक दूरी घटकर इंटरनेट तक सीमित हो गई है| व्यक्ति अपने मित्रों परिवारों के साथ जुड़े रह सकते हैं चाहे वह कहीं भी हो| सोशल मीडिया विचार अनुभव साझा करने का एक मंच है |
आधुनिक तकनीक के नकारात्मक पहलू भी हैं,व्यक्तियों का प्रौद्योगिकी पर निर्भर होना, सोशल मीडिया की आदत होना, वीडियो गेम खेलना, जीवन को कठिन बनाता है,जिससे हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है| आधुनिक जीवन शैली ने महिलाओं के सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक मानदंडों में बदलाव किया है,पारंपरिक और पारिवारिक संरचना बदल गई है, संयुक्त परिवारों का विघटन होकर एकल परिवार की स्थापना हो रही है|
जीवन शैली का स्वास्थ्य से संबंध-
गरिष्ठ आहार मोटापा हृदय रोग जैसे असंख्य बीमारियों को जन्म देता है| व्यायाम और कसरत का नितांत अभाव है,साथ में तंबाकू और शराब का सेवन व्यक्ति में उच्च रक्तचाप, श्वसन संबंधी रोग, हृदय रोग,स्ट्रोक, की संभावना में वृद्धि करता है| अवसाद और चिंता में मानसिक रोग भी घर करने लगते हैं|
जीवन शैली से नियंत्रित होने वाले कुछ रोगों पर नियंत्रण हेतु उपाय-
उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण करने हेतु कारगर उपाय –
अतिरिक्त वजन घटाना,
नियमित व्यायाम,
संतुलित भोजन,
नमक का कम सेवन करें,
शराब सीमित करें,
धूम्रपान छोड़ें,
अच्छी निद्रा से तनाव कम करें|
अपनी औषधियां नियमित लें |
घर पर अपनी रक्तचाप की निगरानी करें|
सामान्य रक्त चाप
सिस्टोलिक 120 मि मि डायस्टोलिक 80 मि मि से कम,
उच्च रक्तचाप
सिस्टॉलिक 130 से 149,
डायस्टोलिक 80 से 89 मि मि,
मध्यम उच्च रक्त चाप
140 से अधिक,90 से अधिक
अत्यधिक उच्च रक्त चाप
180 से अधिक 120 से अधिक
मधुमेह रोग को जीवन शैली में संशोधन करके नियंत्रित किया जा सकता है|
संतुलित भोजन,
हरी सब्जियां अधिक मात्रा में,
दाल, मोटा अनाज,वसा रहित डेरी चर्बी रहित मीट|
प्रत्येक तीन माह पर रक्त शर्करा परीक्षण कराएं |
नेत्र परीक्षण प्रत्येक वर्ष कराएं |
रक्तचाप एवं कोलेस्ट्रोल का परीक्षण कराएं |
तनाव प्रबंधन-योगा, कपालभाति, प्राणायाम,
धूम्रपान निषेध,इससे हृदय रोग स्ट्रोक किडनी डिजीज रक्त से संबंधित बीमारी होती है|
श्वसन संबंधी रोगों पर जीवन शैली का संशोधन कर नियंत्रण हेतु आवश्यक उपाय-
धूम्रपान निषेध, औषधि,निकोटिन रिप्लेसमेंट,स्वयं सहायता,परामर्श सिगरेट सिगार तंबाकू आदि का बहिष्कार|
संतुलित आहार,नियमित व्यायाम,
आराम,
नियमित औषधि का सेवन,
ऑक्सीजन का संतुलित उपयोग,
श्वसन गति नियंत्रित करें,
संक्रमण से बचें,वैक्सीनेशन कराये,
जीवन शैली में बदलाव –
लोकप्रिय नियम है, जिसे 21/ 90 कहते हैं| आदत बनाने में 21 दिन लगते हैं, और इसे स्थाई जीवन शैली में बदलाव लाने में 90 दिन लगते हैं| वास्तविकता इससे परे भी हो सकती है |
संतुलित आहार और व्यायाम द्वारा आप प्रति सप्ताह लगभग 460 ग्राम की दर से वजन घट सकते हैं|
वजन घटाना- आमतौर पर पुरुषों का वजन पेट कम होने से पता चलता है,महिलाओं का पूरे शरीर का वजन कम होता है, लेकिन जांघों और कूल्हे का वजन बरकरार रहता है|
हाइट और वेट चार्ट –
बीएमआई चार्ट मुख्य है,वजन किलोग्राम को ऊंचाई मीटर वर्ग से विभाजित किया जाता है |
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल द्वारा व्यक्ति निम्न बीएमआई श्रेणियां में से एक में आते हैं,
18.5 या उससे कम -कम वजन
18.5 से 24.9-स्वस्थ भजन
25 से 29.9- अधिक वजन
30 या उच्च स्तर -मोटापा,
प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक जीवन शैली अत्यधिक परिष्कृत थी, इसका प्रमाण देश में साक्षरता दर शत-प्रतिशत होना था, जबकि आधुनिक जीवन शैली में व्यक्तियों का साक्षरता दर 70% के करीब है| भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु अंधी दौड़ में सभी सम्मिलित हैं |झूठ प्रपंच व्यभिचार,धूर्तता,भ्रष्टाचार आज जीवन के अभिन्न अंग है|
पुरातन भारत में पतंजलि अष्टांग योग यम,नियम, संयम, ध्यान,धारणा, प्रत्याहार,प्राणायाम,समाधि आदि दैनिक आचरण के अभिन्न अंग थे| यही अभीष्ट था |आज स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने के साधन मात्र हैं| हमें अपनी गौरवशाली अतीत से सीख कर वर्तमान का निर्माण करना है| जिससे भावी पीढी का भविष्य संवर सके|
डॉ प्रवीण कुमार,
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