*जीवन में हँसते-हँसते चले गए*
जीवन में हँसते-हँसते चले गए
*************************
जीवन मे हँसते हँसते चले गए,
मंजिल पर बढ़ते बढ़ते चले गए।
औरों की नफ़रत में थे रचे बसे,
खुद से ही बचते-बचते चले गए।
दुख का साये भी छूटे हुए मिले,
गम को वो हरते-हरते चले गए।
आँखों से आँसू बहते रहे सदा,
नजरों से ढलते-ढलते चले गए।
यूँ तो हम भी थे पूरे भरे हुए,
मौके भी मिलते-मिलते चले गए।
मनसीरत दिल में थे खूब हौसलें,
पर उन से डरते – डरते चले गए।
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)