जीवन में पुस्तकें
दिनांक 5/4/2019
आज मैं टी वी देख रहा था । तभी अलमारी में रखी पुरानी पुस्तक ने कहा :
” क्या हमें भूला दिया ?
ऐसे रख दिया यहाँ जैसे हम अब बेकार हो गये हैं ।”
मैं फौरन पुस्तकों के पास गया उन्हें निकाला फिर सिर से लगाया , नमन किया और बोला :
” तुमने यह कैसे समझ लिया, तुम ही तो मेरी आदर्श, मेरी मार्गदर्शक हो , दुनिया में माँ का बाद तुमने ही तो मुझे अच्छे बुरे का पाठ पढाया है , मेरी सच्ची दोस्त
हो तुम ।”
अब पुस्तक ने कुछ पुराने पन्ने खोल कर मेरे
सामने रखे । संभवत मैं जीवन में कुछ भटक रहा था उसका भान पुस्तक ने एक अध्यापक के रूप में कराया , उसमें लिखा था :
” अपना काम ईमानदारी , लगन से करो ,भ्रष्टाचार में लिप्त मत हो , जीवन में सिध्दान्तवादी बनों , किसी को तकलीफ मत दो वगैरह वगैरह ।”
मेरी आँखो में आंसू आ गये , सच कहती है पुस्तकें हम भौतिकवाद में जी रहे हैं, अपने माता-पिता, बुजुर्गों के सिद्धांतो से दूर होते जा रहे है , इसीलिए जीवन में भटकाव आता जा रहा है । ”
मैंने निश्चय किया मैं पुस्तकों के करीब रहूँगा और अपने बच्चों को भी पुस्तकों के करीब रखूंगा शायद पुस्तकों के प्रति यही मेरा सच्चा समर्पण होगा ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल