*जीवन प्रबंधन का तरीका*
” जीवन प्रबंधन का तरीका”
हमारे जीवन में प्रबंधन करने का तरीका राम जैसा है या कृष्ण जैसा है……? ?
हिंदू पुराणों में दो महाग्रन्थ महान है पहला रामायण दूसरा महाभारत …! !
पहले ग्रन्थ में रामायण में श्री राम जी ने अपनी सेना का नेतृत्व कर रावण को उसी के देश श्री लंका पर मार गिराया था उसे युद्ध में हराकर जीत हासिल की थी। विजयी होने के बाद अयोध्या नगरी पहुँचे थे।
दूसरे ग्रन्थ महाभारत में युद्ध के दौरान मैदान में कुरुक्षेत्र के रणभूमि पर श्री कृष्ण जी ने कौरवों को पांडवों से पराजित होते हुए देखा था।
एक तरफ रामायण में भगवान श्री रामचंद्र जी अच्छे कुशल योद्धा थे उन्होंने सामने खड़े होकर अपनी सेना का नेतृत्व किया था।
उद्देश्यों की पूरा करने के लिए निर्देशन एवं विभिन्न व्यक्तियों को लक्ष्य प्राप्ति के लिए निर्देशित किया उनकी सेना में लोग श्री राम जी के आदेशों का पालन करने में खुशी महसूस करते थे और चाहते थे कि कार्यो को करने के बाद अपनी प्रंशसा पाना चाहते थे।
भगवान श्री राम जी समय समय पर उचित निर्देश देते हुए कठिन परिस्थितियों में क्या करना है यह भी शिक्षा देते थे। अपनी सेनाओं के लोगों को यह बतलाया और अंत में अंतिम चरण में युद्ध कर विजय प्राप्त कर ली युद्ध मैदान से जीत कर अंतिम समय में अच्छा परिणाम साबित हुआ।
महाभारत में दूसरी ओर भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन से कहा – कि हे अर्जुन मैं युद्ध नही लड़ूंगा और न ही कोई हथियार अस्त्र शस्त्र उठाऊंगा सिर्फ मैं तुम्हारे रथ पर बैठकर रथवाहक सारथी बनकर ही फर्ज निभाऊंगा और युद्ध में कृष्ण जी ने ना कोई अस्त्र शस्त्र उठाया केवल सारथी ही बने रहे जो उन्होंने कहा था वही किया …. सिर्फ सारथी बनकर रथ को इधर से उधर घुमाते ही रहे फिर भी पांडव युद्ध में जीते और युद्ध में लक्ष्य प्राप्त कर विजयी घोषित हुये थे।
उपरोक्त दोनों ग्रन्थों में कहानियों में क्या अंतर है यही मैनेज प्रबंधन करने का सही तरीके से संचालन करना ही था जो सेनाओं का नेतृत्व करते थे वो ही उनका सही तरीका अपनाया गया था।
भगवान श्री राम जी बंदरों की सेनाओं का नेतृत्व कर उन्हें युद्ध करने में उतना ही सक्षम व प्रवीण नहीं थे और वो निर्देश करना चाहते थे।
दूसरी ओर महाभारत में श्री कृष्ण जी अर्जुन का नेतृत्व कर रहे थे जो उस समय के धुरंधर तीरंदाज तीर कमान चलाने में निपूर्ण माहिर धनुष विद्या में महारात हासिल की थी एक कुशल महारथी थे।
भगवान श्री राम जी की सेना के सम्मुख नेतृत्व करके सेना को मार्गदर्शन करते रहते थे जबकि महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण जी नेतृत्व योद्धा के दिलोदिमाग से भ्रम बाधाओं को दूर करने का कार्य कर रहे थे लेकिन अर्जुन को उन्होंने धनुष बाण चलाना नही सीखाया था।
एक अलग परिप्रेक्ष्य में उन्होंने ज्ञान के रूप में गीता का अद्भुत ज्ञान देकर विभिन्न रूपों में दर्शन दिखाया गया और गीता का ज्ञान देकर ही मार्गदर्शन किया था।
इन दोनों कथाओं में पुराणों की मूलभूत अंतर कुछ इस प्रकार से है …..
श्री रामचन्द्र जी – एक कुशल योद्धा वानरों का नेतृत्व करने में गम्भीरता का गुण शालीनता महत्वपूर्ण कदम और सुझाव अपने कार्यों के प्रति जागरूक रहना सेना को युद्ध के लिए प्रेरित कर प्रेरणा प्रदान करना ये तरीका अपनाया गया था जो कार्य करने का बेहद खूबसूरत सराहनीय योगदान था।
श्री कृष्ण जी – अपनी ज्ञानचक्षु से गीता का उपदेश देकर कुशलता से कार्य करते हुए कूटनीतिज्ञ स्पष्टता से सेना के सदस्यों को नेतृत्व करने की अनुमति प्रदान किया गया और समूहों को उद्देश्य देकर गीता का ज्ञान देते हुए युद्ध करने के लिए मार्ग दिखाकर व्याख्या किया।अपनी सच्ची भावनाओं को प्रदर्शित कर जाहिर नहीं करना चाहते थे।
जीवन में हम सभी यही तस्वीर देखें कि हम भी परिवार एवं समूह में किस तरह के माता पिता व पालनहार पालक हैं एक वह जो अपने बच्चों के प्रश्नों का उत्तर देते हैं समस्याओं का समाधान निकालते हैं।
दूसरा यह है कि लोगों अथवा अपने ही बच्चों से प्रश्नों का उत्तर पूछते हैं ताकि हम अपनी समस्याओं का समाधान निकाल सकें……?
क्या हम वह व्यक्ति है जो हर समय कहते हैं या निर्देशित करते हैं जो संदेह (भ्रम) को दूर करते हैं व्यक्ति और बच्चों को रास्ता दिखाने में मार्गदर्शन में अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने में मदद या सहायता प्रदान करते हैं।*खुद समस्याओं को हल करो या समस्याओं को हल करने के लिए सिर्फ मार्गदर्शन करते जाओ*
क्या हम ऐसे व्यक्ति है जिनके पास बंदरों जैसी वानर सेनायें हो और उनसे निपटने के लिए सम्हालने के लिए और भी रास्ते हैं या आपके पास कुशल मार्गदर्शन हो जो समस्याओं से निपट सकें …..
आज की युवा पीढ़ियाँ यह नहीं चाहती है कि किसी कार्यों को प्रबंधन कैसे किया जाय वे खुद ही अपने कार्यों के प्रति सजग व कार्यों के उद्देश्यों को जानते ही है और दुनिया में विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से वाकिफ हैं यह आज की युवा पीढ़ी जानती है।
आज की युवा पीढ़ी अर्जुन है और ज्ञान व प्रशिक्षण को ज्यादा महत्व नहीं देती है परन्तु उन्हें एक ऐसा कृष्ण जी जैसा सारथी चाहिए जो सफल गुरू बनकर ज्ञान देकर मार्गदर्शन करें जो मस्तिष्क में ऐसा ब्यौरा दे जिससे सभी कुछ स्पष्ट रूप से दिमाग में बैठ जाये इन चीजों की बेहद आवश्यकता है।
यदि आप आज की युवा पीढ़ी में श्री रामजी की तरह से प्रबंधन चाहते हैं तो ऐसे तरीके से असफलता ही मिलेगी दूसरी तरफ हमारे पास कुछ ऐसे लोग हैं जो कि ज्यादा प्रशिक्षित नही है और आपकी प्रतिभा पर विश्वास रखते हैं तो उनके लिए श्री रामजी की प्रबंधन प्रणाली का तरीका उचित है।
अब हमें यह सोचना होगा कि हमें अपने जीवन में कौन सी प्रबंधन प्रणाली उचित होगी यह सोच विचार करें श्री राम जी की प्रबंधन प्रणाली अपनायें या श्री कृष्ण जी की प्रबंधन प्रणाली अपनायी जाये …… ! ! !
अब हमें जीवन में यह तय करना है कि श्री राम जी जैसा प्रबंधन अपनाया जाना चाहिए या श्री कृष्ण जी जैसा ये हमारे खुद के जीवन पर निर्भर है……. ! ! !
जय श्री राम जय श्री कृष्णा
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम राम हरे हरे।।
ये जीवन का महामंत्र है।