जीवन परीक्षा
रोग, दुख, कठिनता एवं प्रतिकूलता रुपी परीक्षाये जीवन पर्यंत चलती रहती है। कभी कठिन तो कभी सरल, कभी हम समझ ही नही पाते कि यह परीक्षा है। इन परीक्षाओं में कुछ मे सफलता तो कुछ मे असफलता मिलती है। हमारे जीवन की सार्थकता एवं उपलब्धियां इसी पर निर्भर करती है। त्याग, शील, गुण और कर्म सभी से परीक्षा होती है। अपना भाग्य हम अपने कर्म और विश्वास से कई बार बदल सकते है, ईश्वर भी इसमे सहायता करते है। यदि कर्म विश्वास एवं ईश्वर की सहायता से भी मनोवांछित फल नही मिलता तो इसे क्या कहेंगे ?
घर की मालकिन बच्चों की ममतामयी मां सभी को वात्सल्य प्रेम से बांधने वाली करूणामयी ने कहा – कोई खास तकलीफ नहीं है, फूले पेट की वजह से उठने-बैठने में परेशानी होती है। मेरा मन तो अस्पताल जाने का नहीं है पर उलझन है कि पेट क्यों फूला है ? इसलिए जाऊंगी। डर भी लग रहा है। मायके में प्रेम भैय्या से बात की भैय्या ने बात को गंभीरता से नहीं लिया शायद व्यस्त रहे होगे।
मंझली और छोटी बेटी जो इसी शहर मे है बराबर देख भाल करती रही। रिन्कू बडी बेटी जो बाहर रहती है मम्मी के अस्पताल मे भर्ती होते ही पहुंच गई। माँ के इलाज के लिए बेटा दो दिन पहले ही आ गया। अपनी बहन के साथ अस्पतालों और डॉक्टरों के, खूब चक्कर लगाऐ। आखिर तय हो गया कि अमुक डाक्टर तथा अमुक अस्पताल मे फलां तारीख को इलाज के लिए जाया जायेगा।
प्रदेश का सबसे बडा अस्पताल नाम के आगे रायल लगा हुआ, के प्रमुख डाक्टर के आश्वासन पर कि ऐसे रोगी रिकवर कर जाते है इलाज शुरू हुआ।
मै कभी अकेला नहीं रहा, वो कभी अकेला छोडती ही नही थी। वो अस्पताल में, मै अकेला घर मे, रह रह कर उनकी कही हुई बातें और काम याद आते रहे। कई वर्षों तक अपने निजी मंदिर के लिए जन्माष्टमी पर वस्त्र भोग और प्रसाद बनाने वाली लगनशील परिश्रमी मेरे बच्चों की मां पाग बनाने की तैयारी महीनो पहले से खरबूजे के बीज एकत्र कर किया करती। इस वर्ष भी बीजे छिल कर रख गयीं।
मां का लाडल बेटा तो पूरी तैयारी के साथ मन बना के आया कि कितना भी समय लग जाए कितने भी पैसे खर्च हो जाएं मां को निरोग कर के रहूंगा। उसने किया भी, जाब से छुट्टी लेकर खूब सारे पैसो का इंतजाम किया, परिश्रमी तो वो है ही। इस संसार में असंख्य लोग ऐसे है जो चाह कर भी अपने माता पिता की सेवा नही कर पाते पर मेरे सौभाग्यशाली बेटे को मौका मिला तो मन वचन और कर्म सभी से वो करता रहा।
सभी बच्चे बेटियां बेटा और बहू ने पूरी तन्मयता दिखाई। किसी ने घर सम्भाला किसी ने बाहर तो कोई डाक्टर के संपर्क में निरंतर बना रहा तथा किसी ने अस्पताल सम्भाला।
अस्पताल से उनके हालत की पल पल की खबर आती रही, सुधार हो रहा है जल्दी ही ठीक होकर घर आ जाएंगी। सभी लोग आशावान, डाक्टर ने भी कहा जल्दी ही घर भेज देंगे। वो समय भी आ गया जब घर की मालकिन वापस घर आ रही थी।कल सुबह या दोपहर तक आ जाएंगी।
शाम को ही बेटे का फोन आया, – पापा जी अभी थोडी देर मे मम्मी को घर ला रह हूं। मै चौंक गया पूँछा- क्यों ? क्या हुआ ? वो तो कल आने वाली थीं, इतनी जल्दी क्या है ? रात वहीं रूको कल लेके आना। नहीं पापा जी तैयारी हो चुकी है अभी लेके आ रहा हूं। कुछ ही देर मे एम्बुलेंस का सायरन सुनाई दिया जो दरवाजे पर आ कर रूकी। मै भाग कर बाहर गया कि स्वागत करूंगा। एम्बुलेंस में झांक कर देखा तो कफन मे लिपटी एक लाश पडी थी। मेरे मुंह से अनायास ही निकला – ये क्या उठा लाए ? तुम्हारी मां कहां है ? बेटा लिपट के रोते हुए बोला – ये मम्मी है, नही रहीं। उसी से लिपट कर बेतहाशा रोते हुए पूंछा- अपने पैरों पर चल के गई थी कफन मे लपेट के लाये क्या ऐसे ही इलाज कराया जाता है ? पानी की तरह पैसा बहाया अथक परिश्रम किया जाने कितनी विधाता से प्रार्थना की गई। कर्म मे तो कोई कमी नहीं थी, विश्वास भी पूरा था उसका फल ये मिला ? जरूर कहीं न कहीं कोई चूक हुई है, डाक्टर ने धोखे मे रक्खा होगा।
भाग्य और प्रारब्ध दो अलग विधान हैं। प्रारब्ध विधाता मनुष्य के जन्म के पहले लिख देते है। कर्म और विश्वास से भाग्य बदला जा सकता है, प्रारब्ध नही।
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अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297