जीवन पतली डोर है
विनोद सिल्ला के दोहे
जीवन पतली डोर है, जो कुदरत के हाथ।
जब तक कायम डोर है, तब तक रहता साथ।।
जीवन देख करीब से, जीवन है अनमोल।
जीवन पावन सा लगे, पूरा – पूरा तौल।।
जीवन दुख-सुख से भरा, आएं-जाएं रोज।
सुख में फूलों सा लगे, दुख में लागे बोझ।।
जीवन जीना पड़ रहा, चाहे कुछ हो हाल।
कोई डावांडोल है, कोई मालामाल।।
जीवन डाली फूल की, जीवन कंटक हार।
जीवन हर पल और है, नहीं किसी को सार।।
जीवन भर करता रहे , मानव मारो-मार।
छोड़ – छाड़ जाना पड़े, गाड़ी घोड़ा कार।।
जीवन सिल्ला जी रहा, दुख-सुख कर निर्वाह।
दुख भी जाना बीत है, ना ही सुख की चाह।।
-विनोद सिल्ला©