” जीवन चक्र”
जिन्दगी……………………….एक पहेली है!
ये कल भी अकेलीथी, आज भी अकेली है
यूँ तो सफर मे मिलें हम सफर अनेक,
पर व्यस्तता के चक्रव्यूह मे खो गये प्रत्येक
सीमित साधनो का था वह ,बाल्यकाल,
आज भी लगता है वह, सबसे स्वर्णिम काल,
मां का था आँचल, और पिता का दुलार
उससे सुखद कोई नही है! उपहार
जाने कहां खो गई अब वह यौवन की सखियां
वह मस्ती, अठखेलियाँ और ढेरों बतियाँ
फिर जीवन में वो दायित्वो के भंवर का आना
कभी लहरो का ऊपर और फिर नीचे को जाना
वक़्त के वेग में फिर वो ,उम्र का ढलता जाना
अब तो जीना है,अपने लिए भी इस बात का समझ में आना
तो मत समझो जीवन के इस पड़ाव को अन्त की छाया
ये तो बस जीवन की दूसरी पारी का प्रारभं है आया
तो जी लो यारो इसमे जी भरकर यूँ ही
क्योंकि अब ही तो स्वयं के लिए जीने का वक्त है पाया
डॉ. कामिनी खुराना (एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)