जीवन को दिशा देती हैं किताबें,किताबों से दूर न हों
आज हम किताबों से दूर होते जा रहे हैं ?यदि वर्तमान समाज पर दृष्टि डाली जाए तो ऐसा सोंचना सच प्रतीत होता है। पुस्तकें मात्र ज्ञान के वृद्धि के लिए आवश्यक नहीं होतीँ, वरन ये हमारी कल्पनाशक्ति व वैचारिक छमता को बढाती हैं ,परन्तु जिस तरह से आज हमारी युवा पीढ़ी किताबों से दूर हो रही है उसे देखकर बहुत वेदना होती है। वर्तमान परिस्थितियों में हमारी पीढ़ी गूगल पर ही समस्याओं के समाधान ढूंढने व फेसबुक पर अपने इतने दोस्त बनाने में इतनी व्यस्त हो गयी है कि उसके लिए बांकी कुछ व्यर्थ सा प्रतीत होता है। कुछ लोगों को तो किताबें पढ़ना ही पसंद नहीं होता। जबकि कुछ ऐसे लोग हैं जो परीक्षा पास करने के लिए ही पुस्तकें पढ़ते हैं। इस दुनियां में बहुत कम लोग होते हैं जो अपना ज्ञान बढ़ाने व जीवन से जुड़ी बातों की जानकारी के लिए पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं
किताबों से दूरी बढ़ने के कारण ही आज व्यक्ति की जीवन शैली बदल रही है। बड़े बुजुर्गों ने किताबों को सबसे अच्छा दोस्त माना है। ऐसा दोस्त, जिसके पास हर सवाल का जवाब होता है। जो हर दौर में लोगों का सच्चा साथी बनकर उभरी है। लेकिन इधर कुछ सालों से हमने इन्हीं दोस्तों से किनारा कर लिया है। एंटरटेनमेंट के साधन बढ़े तो हम ओर मुड़ गए। किताबें को अब सिर्फ पढ़ाई का हिस्सा ही मान लिया गया है। जिंदगी में सिनेमा, सोशल मीडिया को शामिल करते करते हमने किताबों से पुरानी वाली दोस्ती कम कर ली। कुछ बदलाव तो लाजिमी है। यह भी कहा जा सकता है कि पढ़ना कम हुआ, तो लिखना, सोचना, समझना भी कम होता गया। व्यक्ति को जिस सकारात्मक दिशा में सोंचना चाहिए ,रचनात्मक चीजों को ढंग से समझना चाहिए ,विचारों की गहराई को पकड़ना चाहिए ,वैसा हमारी वर्तमान व युवा पीढ़ी में कम दिखाई दे रहा है,वे केवल अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति व मनोरंजन के साधन जुटाने में लगे हुवे हैं। करियर के लिए पढ़ना अच्छी बात है लेकिन अगर आप अपना संपूर्ण विकास चाहते हैं तो उन किताबों, साहित्य को पढ़ें जो आपके भीतर सोचने की प्रवृत्ति पैदा करें। जो आपकी इमेजिनेशन पावर को और मजबूत करें। कोर्स की किताबें आपको टेक्निकल नॉलेज तो देती हैं लेकिन समाज को समझने के लिए एक अच्छे साहित्य को पढ़ना भी जरूरी है।
आज मनुष्य जीवन में तनाव ,चिंता ,अवसाद आदि की जो समस्याएं पनप रहीं है ,उसका प्रमुख कारण अपरिपक्व सोंच व जीवन के प्रति नकारात्मक नजरिया है। किताबें मनुष्य की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। इनसे दोस्ती करने वाला कभी अकेला नहीं रहता। ये मनुष्य को ज्ञान का अनमोल खजाना देती हैं और बदले में कुछ नहीं मांगती। न कोई शिकायत करती हैं और न ही रूठती हैं।
जब हम पुस्तक पढ़ते हैं ,घटनाओं ,कहानियों व उदहारणों को पढ़ते हुए बातों को समझते हैं। ऐसा करने पर हम नए ढंग से सोंच पाते हैं वरन अन्य लोगों को भी हम जीवन के प्रति नया दृश्टिकोण दे पाते हैं। पुस्तकें न केवल हमारी कल्पनाओं के द्वार खोलती हैं ,बल्कि जीवन में तरक्की के राह भी दिखाती हैं।
किताबें पढ़ने की यह प्रवत्ति यदि हमारी नव पीढ़ी में नहीं आयी तो आने वाले समय में शायद ऐसे बच्चों की पीढ़ी पैदा होगी ,जिनके लिए पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान एक अबूझ पहली बनकर रह जायेगा।इस तरह से यह पीढ़ी वैचारिक दृष्टि से अपरिपक्व होगी व स्वावलम्बी न होकर परावलम्बी होगी।