जीवन के सारे सुख से मैं वंचित हूँ,
जीवन के सारे सुख से मैं वंचित हूँ,
नहीं कोई स्थान ह्रदय के कोने में
क्यूं मैं ऐसी छलनाओं से कुंठित हूँ,
कहीं मेरी मुक्ति का द्वार नहीं कोई
मैं अपने हीं बुने जाल में गुंठित हूँ,
नहीं पूजने योग्य मेरा कोई भी पक्ष
त्याग की देवी हूँ तो लेकिन खंडित हूँ,
सीमाओं में रहने का वह संधि-पत्र
जिस पर मैं हस्ताक्षर बनकर अंकित हूँ,
बनी कभी पाषाण, कभी दी अग्नि-परीक्षा
शापित क्यूं हूँ मैं ,क्यूं मैं हीं दंडित हूँ।।