” जीवन के मधुगान हैं ” !!
हलधर की बेटी ठहरी मैं ,
हँसी लगे पहचान है !!
हरे भरे खेतों में रमती ,
वहन करूँ जिम्मेदारी !
हरी चुनरिया माँ धरणी की ,
उस पर मैं जाऊँ वारी !
शिशु सवारी करे पीठ पर ,
मेरी यह मुसकान है !!
बरस गये हैं कारे बदरा ,
खिला खिला सा मौसम है !
यहाँ वहाँ मुस्कान सरस् है ,
पल पल हँसता हरदम है !
आज खुशी घर आँगन नाचे ,
ससुरी लगे जवान है !!
भोर यहाँ देती किलकारी ,
दिन जवान गबरू गबरू !
रातें शरमाई सिमटे है ,
कितनी ओर ज़रा ठहरूं !
मेहमाँ सा है समय यहाँ पर ,
सभी कहे बलवान है !!
आज बड़ी मँहगी है खेती ,
खाद बीज भी है मँहगा !
ओढ़ पुरानी फिरूँ चुनरिया ,
वही पुराना है लंहगा !
भाग बदा है पायेगें जो ,
करते खूब गुमान हैं !!
चौपालों पर राजनीति की ,
चर्चाएं हैं गरम गरम !
है कबीर , तुलसी की पोथी ,
याद रहे ईमान धरम !
यहाँ लबों पर सजते रहते ,
जीवन के मधुगान हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )