जीवन के दिन चार
करें शरारत वो कभी, करें कभी तकरार !
समझूं इसको दिल्लगी, या समझूं मै प्यार ! !
दिखता है जितना सहज,नही काम आसान !
अपनो मे करनी अगर, अपनो की पहचान !!
यही सोच कर कट गये,जीवन के दिन चार!
होंगे मेरे भी कभी,……स्वप्न यहां साकार!!
उनके हाथों मे रहा, ….जब तक मेरा हाथ !
रिद्धि सिद्धि समृद्धि सुख, रहे अमूमन साथ !!
रमेश शर्मा