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31 Dec 2016 · 4 min read

जीवन के अंतिम पड़ाव पर लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा लिखी गयीं लघुकथाएं

+कवि रमेशराज के पिता लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में लिखी गईं 8 लघुकथाओं में से पहली लघुकथा— ‘ घोषणा ‘
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अघोषित बिजली कटौती के खिलापफ जनाक्रोश भांपकर विद्युत-अधिकारियों ने आक्रोशित जनता को समझाया-‘‘भाइयो! हम चौबीस घंटों में से किसी भी समय कितने भी घंटे बिजली काटें, इसे घोषित ही समझें।’
तभी भीड़ में से एक व्यक्ति बड़बड़ाया-‘‘सालो! यह और कह दो कि अगर हम बिजली बिल्कुल न दें तो जनता समझ ले कि अभी बिजली का आविष्कार ही नहीं हुआ है।’’

+कवि रमेशराज के पिता लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में लिखी गईं 8 लघुकथाओं में से दूसरी लघुकथा— ‘ बचत मसाला ‘
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इंजीनियर साहब से एक किसान ने गुहार की-‘सरकार आपका बनवाया हुआ पुल, जिसका उद्घाटन कल हुआ था, रात अधिक वर्षा से आयी बाढ़ के कारण पानी में बह गया।’
इन्जीनियर साहब ने किसान को बड़े प्यार से समझाया-‘जब पानी के ऊपर पुल बना है तब पुल नहीं तो क्या मेरी कोठी बहेगी?’
किसान मन ही मन बुदबुदाया-‘ हाँ हुजूर की कोठी कैसे बह सकती है, वह तो बचत मसाले से बनी है।’’

+कवि रमेशराज के पिता लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में लिखी गईं 8 लघुकथाओं में से तीसरी लघुकथा— ‘ खाना ‘
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एक मित्र दूसरे मित्र से बोला-‘यार हमारे पड़ोसी देश ने अमेरिका से बड़ी मारक और भयंकर तोपें हासिल की हैं, कहीं हमारे देश पर हमला न कर दे।’
मित्र बोला-‘‘घबराने की क्या बात है। हमारे मंत्री तो तोपों को ही खाते हैं और उन्हें हजम भी कर जाते हैं।’’

कवि रमेशराज के पिता लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में लिखी गईं 8 लघुकथाओं में से चौथी लघुकथा— ‘ बिल साथ रखो ‘
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चूड़ी वाला चूडि़यों की गठरी सर पर रखे देहात में बेचने जा रहा था। रास्ते में सेलटैक्स अधिकारी ने जीप रोककर बेंत गठरी पर जमाया।
काफी चूडि़यां चड़-चड़ की आवाज के साथ टूट गयीं। चूड़ी वाला फूट-फूट कर रोने लगा। अधिकारी
स्थिति भांपते हुए बड़ी बेशर्मी से गुर्राया-‘बिल तो होगा नहीं तेरे पास… आज छोड़े देता हूं… आइन्दा बिल साथ रखना, समझे।’

+कवि रमेशराज के पिता लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में लिखी गईं 8 लघुकथाओं में से पाँचवीं लघुकथा— ‘ इमरजैंसी ‘
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‘‘सालो! बीच बाजार में झगड़ा करते हो….।’’ कहते हुए एस.ओ. ने दो व्यक्तियों की पीठ और पैरों पर बेंत जमाये और गुर्राया-‘‘ ले चलो सालों को थाने…।’’
इस कांड का चश्मदीद गवाह एक दुकानदार तभी बोला-‘‘ साहब इनमें यह तो बेहद सज्जन आदमी हैं। आपने बिना पूछताछ के बेचारे बेकसूर को भी पीट डाला।… आपका यह कैसा न्याय है कि इसे एक गुन्डे ने पीटा और फिर आपने भी धुन डाला।’’
एस.ओ. तुरन्त दुकानदार पर गुर्राया- ‘‘साले कानून सिखाता है, इसके साथ तुझे भी थाने में बन्द कर दूंगा। पता नहीं है इमरजेंसी लगी हुयी है।’’

+कवि रमेशराज के पिता लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में लिखी गईं 8 लघुकथाओं में से छठवीं लघुकथा— ‘ ग्राहक ‘
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‘‘लालाजी बाजार में गेहूं के भाव तो बहुत सस्ते हैं, आपने आटे के दाम बहुत तेज लगाये हैं, कुछ कम करियेगा ना…।’’
लालाजी मन ही मन बुदबुदाये-‘‘रे मूरख किलो में नौ सौ ग्राम तो हम वैसे ही तोले हैं… और क्या कम करें।’’

कवि रमेशराज के पिता लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में लिखी गईं 8 लघुकथाओं में से सातवीं लघुकथा— ‘ रिमोट कन्ट्रोल ‘
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नर्स ने डॉक्टर से विनती-भरे स्वर में कहा-‘‘सर आपने जिस मरीज के पेट की गली हुयी आंत काटकर टांके भरे हैं उसकी….।’’
डॉक्टर ने नर्स की बात अनसुनी करते हुए कहा-‘‘फालतू बातों के लिए मेरे पास टाइम नहीं है। पता है अभी मुझे कितने और करने हैं….।’’ यह कहकर डॉक्टर ने आपरेशन थियेटर से बाहर निकलते हुए पूछा-‘‘आखिर हुआ क्या?’’ नर्स बोली-‘‘डाक्टर साहब आपने मरीज के पेट में केंची छोड़ दी है।’’
दूसरी नर्स बोली-‘‘कोई चिन्ता की बात नहीं बहन! डाक्टर साहब रिमोट कन्ट्रोल से जब टांके काटेंगे तब केंची को बाहर निकाल देंगे।’’

+ कवि रमेशराज के पिता लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में लिखी गईं 8 लघुकथाओं में से आठवीं लघुकथा— ‘ भूख ‘
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प्रदेश के मुख्यमंत्री एक विराट जन सभा में दहाड़े-‘‘यह सब कुछ स्टंट है…बकवास है कि हमारे प्रदेश में इन पिछले दो महीनों के बीच रोटी के अभाव में पचास व्यक्ति भूख से मर गये। यह विपक्षियों की साजिश है हमारे खिलाफ। लगता है हमें भीतर से कमजोर करने के लिए कुछ पत्रकार भी विदेशी एजेन्टों के हाथ बिक गये हैं। भूख से भी भला कोई मरता है!…. मैं पिछले कई वर्षों से मंत्री-पद की भूख से पीडि़त रहा, क्या इस दौरान मेरी भूख से मौत हुयी…नहीं न? मेरे प्यारे भाइयो! बहिनो! इन देशद्रोही तत्त्वों के बहकावे में मत आना। अब देखो ना! मैं पांच वर्ष से प्रधानमंत्री पद की कुर्सी का भूखा हूं तो क्या मेरी मौत सुनिश्चित है? नहीं हरगिज नहीं। जब मैं लम्बे अन्तराल तक भूख झेलते हुए जिन्दा हूं तो भला दो-चार दिन भूखा रहने पर कोई कैसे मर सकता है?’’
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प्रस्तुति-रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001

Language: Hindi
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