जीवन की भागदौड़
जीवन की भागदौड़ (दोहे)
तन -मन और समाज की,खातिर भागमभाग।
मृगमरीचिका इस जगत,के प्रति अति अनुराग।।
आवश्यकतायें बढ़ गयीं,सदा अधिक की भूख।
दौड़-दौड़ कर हांफता,जाता मानव सूख।।
मनोकामना बलवती,पूरी कभी न होत।
पूर्ति हेतु तन भागता,चढकर मन के पोत।।
भागदौड़ में जा रही,जीवन की हर श्वांस।
है विश्राम कभी नहीं,धड़कन का अहसास।।
प्यासा मन अति नाचता,तन है सदा अधीन।
प्यास कभी बुझती नहीं,जैसे बिन जल मीन।।
जीवन में संतोष के,बिना नहीं है चैन।
भागदौड़ में बीताता,यह जीवन दिन -रैन।।
हिन्दी काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।