जीवन का स्वर्ण काल : साठ वर्ष की आयु
जीवन का स्वर्ण काल : साठ वर्ष की आयु
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साठ वर्ष की आयु वास्तव में जीवन के स्वर्ण काल का आरंभ होता है । यह जीवन का एक ऐसा मोड़ है, जहां हम एक नजर पीछे मुड़ कर देखें तो महसूस होगा कि वह रास्ता जो हमने अब तक तय किया था, लगभग सीधा और सपाट था। यह पहला मोड़ है, जहां हमें कुछ अलग होने का आभास होता है । यही वह समय है जब मनुष्य इस संसार को समझ पाता है। लोगों को समझता है, संसार की प्रवृत्तियों को समझता है, प्रकृति के रहस्यों से परिचित होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि वह जीवन की और संसार की क्षणभंगुरता को समझ लेता है ।
साठ वर्ष की अवस्था में ही मनुष्य को यह बोध होता है कि एक दिन संसार से जैसे सब लोग अब तक इस संसार से जाते रहे हैं, उसे भी यह दुनिया छोड़कर जाना है । उसे मालूम हो जाता है और केवल मालूम नहीं बल्कि अनुभूति हो जाती है कि इस संसार रूपी रंगमंच पर उसे केवल सौ वर्षों के लिए अभिनय करने का समय मिला था, और सौ वर्ष के भीतर – भीतर किसी भी समय नाटक का पर्दा गिर सकता है।
साठ वर्ष के बाद स्वर्ण काल तो है लेकिन केवल उनके लिए जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं ।अगर सौ वर्ष तक जीवित रहने के लिए हमारे पास स्वस्थ शरीर है ,तो हमें आगे की यात्रा के लिए चालीस वर्ष मिलते हैं। यह चालीस वर्ष हंसी – खुशी, उत्साह और उमंग के साथ व्यतीत हों ,तभी आनन्द है । शरीर के बोझ को साठ वर्ष के बाद अगर ढोना पड़ता है, तो इसका मतलब है कि शरीर की आयु सौ वर्ष से कम रह गयी है । ऐसे में साठ वर्ष के बाद अगर जीवन भार महसूस होता है, बुढ़ापे की परछाई हमें डंसने लगती है और जीवन का उत्साह समाप्त हो जाता है ,तब इसका मतलब है कि हम केवल मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं ।
आवश्यकता इस बात की है कि हमारी तैयारी कम से कम सौ वर्ष के लिए होनी चाहिए । इसका अभिप्राय यह है कि बुढ़ापा 90 के आसपास शुरू होना चाहिए। इससे पहले नहीं ।जीवन के आखिरी 8 – 10 साल बुढ़ापे में व्यतीत हों, यह तो समझ में आता है और उसमें भी शरीर का बोझ ढोने वाली स्थिति यह तो केवल अधिक से अधिक साल, दो साल या छह महीने ही होनी चाहिए।
प्रकृति ने हमें सौ वर्षों के लिए जो जीवन दिया है, उसमें हम पूरी भूमिका के साथ उपस्थित हों। हमारी सक्रियता और गतिविधियां नए-नए रूपों में आकार ग्रहण करें । जीवन का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि हमें परिदृश्य से हट जाना है । जहां सौ वर्ष बीते , हमारी उपस्थिति समाप्त हो जाएगी।
तो हम इस संसार में अस्थायी रूप से ही उपस्थित हैं । बस यही चीज है, जो हमें सौ वर्ष प्रफुल्लित मन से हल्के फुल्के जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करती है। न कोई बोझ है , न कोई कामना है , न इस संसार में अमर होने की चाह है , न वस्तुओं का संग्रह करने की आशा है ,न प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है। यही वह जीवन है जिसमें साठ वर्ष के बाद व्यक्ति स्वर्णिम काल की ओर प्रवेश करता है और अपनी परिपक्व दृष्टि से, अपनी समझ बूझ और गहरी चेतना से न केवल स्वयं सार्थक जीवन व्यतीत करता है,अपितु संसार के लिए भी अपनी उपादेयता को सिद्ध कर देता है।
अंत में कुछ दोहों से अपनी बात समाप्त करूंगा :-
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सेहत हो अच्छी-भली, तन का अच्छा हाल
साठ साल से है शुरू,समझो स्वर्णिम-काल।।
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मेडीटेशन नित करो , खाओ शाकाहार
सादे जीवन पर चलो, रखना उच्च-विचार
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अपने भीतर डूबना, कहते जिसको ध्यान
मदिरा से ज्यादा नशा, धन्य-धन्य भगवान
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451