जीवन का यथार्थ (मंदाक्रान्ता छंद)
जीवन का यथार्थ
मंदाक्रान्ता छंद
मगण भगण नगण तगण तगण, 2 गुरू = 4/6/7
कुल 17 वर्ण
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मेला जैसा, जगत अपना,
चंद रोजों चलेगा।
धीरे-धीरे, हिम उपल सा,
देखते ही गलेगा ।
ऊँचे जाके,दिनकर तपे,
साँझ पाके ढलेगा।
होली जैसा, तन अनल में,
साथियों से जलेगा ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
10/5/22