जीभ के छाले कहेंगे
हम अगर
कुछ कह न पाए
जीभ के छाले कहेंगे ।
चीखकर दम तोड़ देंगी
गाँव की पगडंडियाँ ,
हर मुहल्ले में मिलेंगी
जमघटों की झंडियाँ।
अब हमें
स्वच्छंद रहना
डाँटकर ताले कहेंगे ।
सर पटककर जब मरेंगी
प्यास से कुछ बदलियाँ,
पुष्प गुच्छों पर हँसेंगी
खिलखिलाकर झाड़ियाँ ।
है नदी मुझमें
समाई
झूमकर नाले कहेंगे ।
जब सभी चलने लगेंगे
साथ लेकर छाँव को,
शब्द-चित्रित व्याकरण खुद
बाँध देगा गाँव को।
मौत किसकी
हो रही है?
देखने वाले कहेंगे।…
—© विवेक आस्तिक