जीने के आदाब
दौलत बँगले गाड़ियाँ ,सब कुछ उनके पास !
सिर्फ छोड़कर एक बस,परहित का अहसास !!
पेड लगाया आज ही,फल भी चाहूँ आज!
इसी रोग से त्रस्त है, पूरा आज समाज!!
कहां किसी ने आज तक,इसका रखा हिसाब !
क्या होते हैं वाकई, ………..जीने के आदाब !!
रमेश शर्मा