जीनियस ( एक बेहतरीन लघुकथा)
जीनियस / लघुकथा
अनिल और मोहन में गहरी मित्रता थी जहां भी जाते साथ- साथ रहते ,साथ -साथ समय बिताते थे । दोनों गिरिडीह जिला के शहरपूरा के रहने वाले थे । विद्यार्थी जीवन से लेकरआज तक महत्वपूर्ण फैसलों का निर्णय साथ मिलकर लेते थे ।पढ़ाई पूरी होने के बाद सबसे बड़ी समस्या रोजगार की तलाश की होती है हर कोई अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते हैं क्योंकि एक समय तक आते-आते परिवार से मिलने वाला सहयोग की धारा कुछ हद तक कम प्रवाहित होने लगती है ।
दोनों मित्रों के पास भी यही समस्या थी प्रत्येक मध्यमवर्गीय विद्यार्थियों के जीवन में सुरसा की तरह समस्याएं मुँह फाड़कर खड़ी रहती है ।थोड़ी -सी धैर्य डगमगाते ही स्टूडेंट लाइफ को निगल जाती हैं ।
आज अनिल ने अपने मित्र मोहन से खुलकर बात की थी । इस तरह पढ़ -लिखकर गाँव की गलियों में घूमना ठीक नहीं लगता है !अनिल की बातों से मोहन ने भी सहमति जताई थी ।
अब दोनों मिलकर एक रोजगार करना चाहते थे जिसमें कुछ आमदनी भी हों , समाज का कल्याण हो और पढ़े लिखे लोगों को रोजगार मिल सके ।काफी उहापोह के बाद एक स्कूल खोलने की निर्णय लिया लिया था इससे गाँव के झोपड़े तक शिक्षा के दीप जलाई जा सकती थी । दोनों ने अपने इस निर्णय पर मुहर लगा दी थी ।इस सुंदर पहल पर अनिल के भैया देवेंद्र और दोस्त जयनंदन का भी भरपूर सहयोग मिला था ।
कुछ दिनों में जीनियस पब्लिक स्कूल बनकर तैयार था । सभी गाँव के बच्चे आकर शिक्षा ग्रहण करने लगे थे । उन्हें पढ़ाने वाले सभी प्रशिक्षित शिक्षक नियुक्त हुए थे ।
तब तक अनिल और मोहन भी सरकारी स्कूल के शिक्षक बन गए थे ।मगर पहचान तो जीनियस पब्लिक स्कूल के कारण मिली थी इसलिए क्षेत्र में बुद्धिजीवी वर्ग के लोग कहते हैं कि दोनों पढ़ने में जीनियस थे और आज जीनियस पब्लिक स्कूल से रोशनी फैला रहे हैं ।
नेतलाल यादव ।
सर्वाधिकार सुरक्षित लघुकथा ।।