जीना तुम ऐसे
कभी दिनकर की किरणों मे, कभी बादल की छांवोंं मेंं
कभी उन तंग गलियों में, कभी खुशहाल गाँवों मेंं
बिता के चार दिन इस जिन्दगी के जाना तुम ऐसे
फिजां मे याद हो तेरी, महक हो इन हवांओ मेंं।
-जटाशंकर”जटा”
दिनांक ०४-०१-२०२०