जीत गया इंसान
कहती है जनता यही, सबका यह सम्मान।
हारी है धोखाधड़ी, जीत गया इंसान।।
फेल हुए चाणक्य जी, जमा घड़े में पाप।
बयार चली विकास की, आसीन हुए “आप”।।
चूर – चूर घमंड हुआ, टूटी उनकी आस।
दिल्ली हाथ से फिसली, भारी रहा विकास।।
चलता उनका ज़ोर कुछ, देते सब को बांट।
धड़ाम हुए जतन सभी, खड़ी हुई फिर खाट।।
टकराती आकाश से, मजलूमों की हाय।
किसी एक अभिशाप से, दौलत सब छिन जाय।।