जिस रास्ते के आगे आशा की कोई किरण नहीं जाती थी
जिस रास्ते के आगे आशा की कोई किरण नहीं जाती थी
मीलों सफर तय किया है उम्मीदों के सहारे चलते चलते,
लौट जाना ही अब मुनासिब रहेगा उन गलियों से सरल
तमाम उम्र विताई है हमने यहाँ लिबास बदलते बदलते !
✍कवि दीपक सरल