जिस भाई के खातिर मैने अपनी किडनी बेची थी
गली सब देख डाली पर शहर पूरा नहीँ देखा
मुहब्बत के मुसाफिर ने कभी सहरा नहीँ देखा
कि जिस भाई के खातिर मैने अपनी किडनी बेची थी
वही भाई कई दिन से मेरा चेहरा नहीँ देखा
गली सब देख डाली पर शहर पूरा नहीँ देखा
मुहब्बत के मुसाफिर ने कभी सहरा नहीँ देखा
कि जिस भाई के खातिर मैने अपनी किडनी बेची थी
वही भाई कई दिन से मेरा चेहरा नहीँ देखा