जिस पर हँसी के फूल,कभी बिछ जाते थे
जिस पर हँसी के फूल,कभी बिछ जाते थे
घंटों बैठे-बैठे हम बतियाते थे
आज बेंच पर उसी मैं आकर बैठी हूँ..
नाम तुम्हारा जिस पर लिखकर छोड़ा था
रिश्ता तो आखिर तुमने ही तोड़ा था
जिस पर हँसी के फूल,कभी बिछ जाते थे
घंटों बैठे-बैठे हम बतियाते थे
आज बेंच पर उसी मैं आकर बैठी हूँ..
नाम तुम्हारा जिस पर लिखकर छोड़ा था
रिश्ता तो आखिर तुमने ही तोड़ा था