जिसे जीना हो
जिसे जीना हो जीने की रवानी ढूंढ लेता है
ये फितरत आदमी की रुत सुहानी ढूढ़ लेता है
जिधर भी ढाल पायेगा उधर का रुख करेगा ही
समंदर को हरेक दरिया का पानी ढूंढ लेता है
अँगूठी पेट से मछली के मिल जाना बताता है
समय हर हाल में खोई निशानी ढूँढ लेता है
समझता ही नहीं नादाँ ये दुनिया लाख समझाये
वो हर रिश्ते में फिर चाहत पुरानी ढूंढ लेता है
वही लिख पायेगा दुनिया में सच्चाई के अफ़साने
लो हर किस्से में अपनी ही कहानी ढूंढ लेता है
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डॉक्टर //इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव