जिलेबी का दिवाना है, कभी मधुमेह ना देखे
मुहब्बत हो जहाँ झगड़ा न कर्कश नाद करना है।
हमेशा साथ के अच्छे दिनों को याद करना है।
किसी का दिल कभी मत तोड़ना कोशिश रहे इतना-
बढे मतभेद जब भी आपसी संवाद करना है।
यहाँ कुछ लोग हैं ऐसे न करते काम जीवन भर।
नहीं होती कभी उनके सुखों की शाम जीवन भर।
नमक रोटी जुटाने में सुबह से शाम हो जाती,
सभी के भाग्य में होता नहीं आराम जीवन भर।
मुहब्बत उम्र ना देखे, मुहब्बत देह ना देखे।
मिले महबूब की बाहें, खुदा का नेह ना देखे।
बुढ़ापे में हसीनों पर नजर, ताज्जुब नहीं होता-
जिलेबी का दिवाना है, कभी मधुमेह ना देखे।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य