जिम्मेदारी
कदम ये चलते चलते रुक जाते हैं।
जिम्मेदारीयो का बोझ उठाते उठाते थक जाते हैं।
गुजर जाता है जब आँखों से शैलाब आसुओ का,
रंगीन नजारे नजर मे तब आते हैं।
कदम ये चलते चलते रुक जाते हैं।
जिम्मेदारीयो का बोझ उठाते उठाते थक जाते हैं।
गुजर जाता है जब आँखों से शैलाब आसुओ का,
रंगीन नजारे नजर मे तब आते हैं।