*जिन पे फूल समझकर मर जाया करते हैं* (*ग़ज़ल*)
जिन पे फूल समझकर मर जाया करते हैं l
हम इक दिन चोट उन्हीं से खाया करते हैंl
वो अपनी हस्ती खुद ही मिटाया करते हैंl
जो अपना ही इतिहास भुलाया करते हैंl
उनको दुनियादारी से क्या लेना देना?
जो सारा घर का बोझ उठाया करते हैंl
आखिर ये पागल दिल को कैसे समझाऊं?
ये मरता उन पे है जो रुलाया करते हैंl
इस शहर में कहने को तो दोस्त बहुत हैं,
पर तनहा तनहा शाम बिताया करते हैंl
कोई रूठे या टूटे क्या लेना देना अब ?
यारी मतलब तक लोग निभाया करते हैंl
दुष्यंत यहां बचके रहना शुभचिंतक से,
वो अय्यारी से होश उड़ाया करते हैं l
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल