जिन्दगी …
ज़िन्दगी …
रुखसारों की
ढलानों पर
ख़ारों की लकीरों में
दर्द की सुनामी
बेआवाज़
कह्र ढा गयी
साँसों की डगर पे
लफ़्ज़ों के सागर को
हौले हौले
लबों की खामोशी
भा गई
क्या ज़िन्दगी यही है
देखकर अंज़ाम
ज़िन्दगी का
शोलों की सेज़ पर
अज़ल भी
घबरा गयी
रुकी
सोचा
क्या
इसी का नाम है
ज़िन्दगी ?
सुशील सरना/16-2-24