जिन्दगी
लम्हा-लम्हा मुश्किल से गुज़र रही है जिन्दगी,
रेत पर बलखाती फिसल रही है जिन्दगी।
कभी तूफानों से टकराती है तानकर सीना,
तो कभी दर्दे-ग़म से मचल रही है जिन्दगी।
दुनिया में लुट गई गैरों की ख़ातिर मुस्कुराकर,
पानी में नमक सी कभी घुल रही है ज़िन्दगी।