जिन्दगी एक अनकही दास्तान ‘
जिन्दगी एक अनकही
दास्तान
अनकही अनसुनी अनचीन्ही
दास्तान ही तो है
यह जिन्दगी
लफ्जों की
अल्फाज़ों । की किसे जरूरत
निगाहें बला का हुनर
रखती हैं
दास्तान ब्यान करने में
उस पर आखों पर
टिके आंसू नगमा निगार
होते हैं.
तमाम कहानी ही कह डालते हैं.
कभी ऐसा भी होता है कि
उम्रें बीत जाती हैं
और अल्फाज ही नहीं मिलते
अल्फाज़ दिल के किसी
भीतरी कोनों में
घुंटे सहमे सी
आह भर कर रह जाते हैं
लफ्जों को जुबां नहीं मिलती
जिन्दगी तो बस
कभी मुस्कुराहटों में
कभी आंसुओं में
और कभी भीगी आंखों में .
दास्तान कह जाती है
यह और ही कहानी है कि
दस्ताने ब्यांन होते होते
बेजुबान हो जाती है।
डॉ करुणा भल्ता