जिनके पास अखबार नहीं होते
दुकान के चबूतरे पे
बैठा था बच्चा ड़र के।
ठिठुरती सरदी मे वो
चिपका था शटर से।
मां आई उसकी फिर
न जाने किधर से।
एक आस लगी सी थी
उसकी हर नजर मे।
कुछ गत्ते,कुछ अखबार
मां ने झोली से थे निकाले।
फिर एक सूखी रोटी के
उसको दिये दो निवाले।
आराम से फिर मां ने
अखबार थी बिछाई।
सो जा तू लाल मेरे
तुझ को है नींद आई।
लेटते ही मां को तो
जल्दी थी नींद आई।
बच्चे की आवाज ने
मां फिर से थी जगाई।
बच्चा बोला
” वो लोग इतनी सरदी मे
कैसे सोते है?
जिनके पास सोने को
अखबार नही होते है?
Surinder Kaur