अभिलाषा
मेरे हृदय के तुम मंदिर में;
कोई दीप जलाओ न;
बरसों से यहाँ घना अँधेरा;
एक किरण बन जाओ न।।
इस मंदिर को पावन कर दो;
बस इतनी सी आशा है;
तुम बन जाओ कोई मूरत;
मेरी ये अभिलाषा है।।
मेरे हृदय के तुम मंदिर में;
कोई दीप जलाओ न;
बरसों से यहाँ घना अँधेरा;
एक किरण बन जाओ न।।
इस मंदिर को पावन कर दो;
बस इतनी सी आशा है;
तुम बन जाओ कोई मूरत;
मेरी ये अभिलाषा है।।