“ जिज्ञासा बनाम हठधर्मिता ”
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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बालकों की जिज्ञासा ,विद्यार्थी के प्रश्न ,भटकते राही का ठिकाना पूछना ,अपने समाज के रीति रिवाज को जानने की लालसा ,अपने पूर्वजों को जानना और विभिन्य ज्ञानों को एकत्रित करना जिज्ञासा के परिधि में आता है जिसके प्रश्नों का उत्तर गुरु ,मात -पिता ,समाज के लोग और अपने परिवार के बुजुर्ग सदस्य देते हैं ! और इसे यदा -कदा समय- समय पर दुहराए भी जाते हैं ! संबंधों के जाल को जानने की उत्सुकता जब कभी भी जहन में आ जाती है , तो उसे घर और समाज के लोग खुलकर लोगों को बतलाते हैं ! क्लास में शिक्षक अपने छात्र -छात्राओं के शंकाओं को दूर करने से कभी नहीं कतराते हैं ! नादान बच्चे को बताया जाता हैं ,-
“ बेटे यह पानी हैं ,यह आग है ,यहाँ पर रहना ,वहाँ नहीं जाना ,ये नहि करना वो नहि करना “
इत्यादि पाठ सीखाए जाते हैं ! इसके बावजूद भी कोई अन्य जिज्ञासा घर कर जाती है तो माता पिता ,भाई और सगे संबंधिओं उसका निराकरण करते हैं !
सीखने की जिसमें ललक होती है उनमें जिज्ञासा होगी ही ! कोई मनुष्य कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता ! जिज्ञासा सम्पूर्ण जीवन तक रहती है ! प्रारम्भिक शिक्षा कहाँ लेंगे ,माध्यमिक शिक्षा कहाँ होगी और ऊँच शिक्षा के लिए हम कहाँ जाएंगे ! कौन -कौन से विषयों का चयन करना होगा ! “इंजीनियरिंग अच्छा होता है ? या डॉक्टर बनें ? या फिर आइ 0 इ 0 एस ? जिज्ञासा और प्रश्नों का सिलसिला आजन्म तक लगा रहता है ! पर इन जिज्ञासा और प्रश्नों का समाधान हमें साक्षात प्रकरण में मिल जाते हैं ! क्योंकि हमें सब जानते और पहचानते हैं ! अपने अग्रज ,माता पिता ,गुरुजन ,मित्र और समाज के लोगों का मार्ग दर्शन मिलता रहता है ! उनके निर्देशों में ही हमारे सपने छुपे रहते हैं !
दुविधा हमें सोशल मीडिया में देखने को मिलती है ! यहाँ भी जिज्ञासा और प्रश्नों का बाजार गर्म है ! बात यह भी नहीं है कि यहाँ शंका समाधान नहीं होता ! साधारणतया जिज्ञासा के आवरण में ही प्रश्न पूँछे तो समाधान सर्वत्र मिलेगा ! मृदुलता ,शिष्टाचार और शालीनता के दायरे में बँधकर जिज्ञासा करें तो शायद खाली हाथ नहीं लौटना पड़ेगा ! सोशल मीडिया का यह दुर्भाग्य है कि हम किसी को जानते नहीं और नहीं पहचानते हैं ! जिज्ञासा जब हठधर्मिता के दहलीज पर खड़े होकर प्रश्न करेगी तो समुचित समाधान मिलना असंभब है !
यह गंभीर बिडम्बना है सोशल मीडिया के साथ ! दोस्त तो बहुत जुडते गए पर संवाद कभी भी ना हो सका ! और भूले -भटके कुछ लिखा तो विचित्र “ शब्दों “ का ही प्रयोग किया ! एक विचित्र शब्द ही हमारे हठधर्मिता का परिचायक होता है ! जो बात लोगों को अच्छा ना लगे उसे लोग हाइड ( HIDE ) कर देते हैं ! और उस हठधर्मी को शायद कभी माफ नहीं करते ! उसे हमेशा डिलीट ( DELET ) और ब्लॉक ( BLOCK )का सामना करना पड़ता है ! सोशल मीडिया में दोस्त बनाना जितना आसान है ,उतना ही उसे तोड़ना सुलभ !
शायद याद हो लक्ष्मण जी को ज्ञान लेने के लिए अंतिम क्षण में लंकाधिपति रावण के सामने घूटने टेकने पड़े थे ! यदि कुछ जिज्ञासा हो तो आदर ,सत्कार और प्यार के लहजे में पूँछें ! क्योंकि पूछने के अंदाज जे ही हमारे व्यक्तित्व का अंदाजा लगता है ! पता लग ही जाता है कि यथार्थतः ये जिज्ञासु हैं या हठधर्मी ? PYSICAL FRIENDSHIP में मतांतर दूर हो सकते हैं पर DIGITAL FRIENDSHIP में एक बार मतांतर हो गया तो सब दिनों का संबंध विछेद ! अतः हमें शिष्ट बनना चाहिए ना कि हठधर्मी !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
एस ० पी ० कॉलेज रोड
नाग पथ
शिव पहाड़
दुमका
झारखंड
भारत
12.06.2022.