” जिंदगी “
मै चंद सांसों का नाम सही
अधरों पर खिलती मुस्कान सही
जीवन की आपाधापी में
होती मेरी भी शाम कहीं ,
रुकती -चलती, गिरती – संभलती
शिकवा जग में सबके सुनती
ये तेरी है ,ये मेरी है (जिंदगी)
क्या मेरी कोई पहचान नहीं ???
क्या मेरी कोई पहचान नहीं???