यही रात अंतिम यही रात भारी।
हवा भी कसमें खा–खा कर जफ़ायें कर ही जाती है....!
singh kunwar sarvendra vikram
आचार्य शुक्ल की कविता सम्बन्धी मान्यताएं
जाने वो कौन सी रोटी है
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
मुझे भी बतला दो कोई जरा लकीरों को पढ़ने वालों
आज़ कल के बनावटी रिश्तों को आज़ाद रहने दो
********* बुद्धि शुद्धि के दोहे *********
सोचके बत्तिहर बुत्ताएल लोकके व्यवहार अंधा होइछ, ढल-फुँनगी पर
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
ग़ज़ल _ सरकार आ गए हैं , सरकार आ गए हैं ,
Sometimes even after finishing the chapter and bidding it a
कभी कभी युही मुस्कुराया करो,
*आदर्श कॉलोनी की रामलीला*