जिंदगी ये नहीं जिंदगी से वो थी
जिंदगी ये नहीं जिंदगी तो वो थी जो हम जी चुके जब मम्मी सुभा दंत कर उठाती थी खुद तयार कर स्कूल छोड कर आती थी
लोकी तोरी ना खाने पर खूब सुनती थी फिर थोड़ी थोड़ी लगाके खाले कहकर खुद खिलती थी
क्या दिन थे वो जब कल का कुछ पता ही नहीं था
हफ्ते महिन ये तो हम बस कोपियो म लिखते थे
कहा फस गए हम समजदारी के दल दाल म आज यह साल के 365दिन भी कम ओर तव स्कूल के 6दिन भी 365से लिखा करते थे
वो भी क्या दिन …अभिषेक उपाध्याय:द्वारा लिखित