जिंदगी बहती रही ((गीत)
गीतः जिन्दगी बहती रही
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पाल की नौका सरीखी
जिन्दगी बहती रही
(1)
भाग्य में जो-जो लिखा था
भोगना सबको पड़ा,
कब नियति के सामने
इन्सान हो पाया खड़ा
साँस कारागार की
जैसे सजा सहती रही
(2)
कष्टमय आकर बुढ़ापा
देह पूरी डँस गया
पर – कटा पक्षी, किसी
पिंजरे में जैसे फँस गया
अनजान ऊँचे-से भवन में
देह बस रहती रही
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रचयिता: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उ.प्र.) 9997615451