जिंदगी को छोड़ कर वो मौत से मिला गया।
जिंदगी को छोड़ कर वो मौत से मिला गया।
बात जब अना कि हो तो कुछ नहीं सुना गया।
रम्ज़ एक दिल में है, ले राह चल पड़े है हम
बस यही गुमान है के कुछ नहीं कहा गया।
‘अहद-ए-दौर में सभी ये मरहले शफ़ीक़ थे
फिर विसाल-ए-यार इस जिग़र का ग़म बढ़ा गया।
दास्तान-ग़म का जब शुरू’ सिलसिला हुआ
हर ग़म-ए-फ़िराक़ की नफ़स को वो दबा गया।
पाक़ इश्क़ था हमें दग़ा हमीं से क्यों किया
उस शब-ए-फ़िराक़ में वो रूठकर चला गया।
दर्द इक छिपा रखा था कब से हम ने सीने में
इक दिया जला हुआ वो फूँक कर बुझा गया।
थी मिरी बिसात क्या करूँ मैं तम में रौशनी
था यही तो फ़ैसला ख़ुदा का सो किया गया।
अहल-ए-शहर को यक़ी था नासेहा कि बात पर
जुल्मतों के दरमियाँ वो आइना दिखा गया।
इस निशान-ए-दिल को शिव यूँ बे-निशाँ लिए रहे
जो सहा था मैंने तब सो सहता ही चला गया।