**जिंदगी की ना टूटे लड़ी**
**जिंदगी की ना टूटे लड़ी**
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आ गई है मुश्किल सी घड़ी,
जिंदगी की ना टूटे लड़ी।
रात – दिन बेचैनी बढ़ रही,
आँसुओं की आई है झड़ी।
कुछ समझ में है आता नहीं,
बात हद-बेहद से भी बड़ी।
नींद आँखों में आती नहीं,
प्रेम की आई अंतिम कड़ी।
याद गहरी रग-रग भर गई,
मोतियों – हीरों सी है जड़ी।
,
क्या करे मनसीरत लापता,
मौत बन आ कर जैसे खड़ी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)