जिंदगी और मौत (कविता)
जिंदगी और मौत दोनों साथ चली
मौत खुश, और जिंदगी उदास थी
मौत पूछी जिंदगी से
तुम उदास क्यों हो?
जिंदगी बोली! पीड़ित करती हूँ,
मैं मानव को,
पर, मौत! तू तो बिचारी!
यू ही बदनाम है,
मौत को हम यूँ ही बदनाम करते है
जरा देख तो ले, जिंदगी को जीकर
न जिंदगी अपने बस में है
ना मौत ही अपने बस में है
जिंदगी ने तो कई बार धोखे दिए
पर मौत से तो ऐसी उम्मीद नहीं
जिंदगी तो बस सवाल है,
जवाब उसकी मौत है।
मौत भी सवाल,
जिसका कोई जवाब नहीं।
जय हिंद