घमंड न करो ज्ञान पर
जा रहे थे एक विद्वान
अपनी धुन में कहीं
अचानक लग गई प्यास बहुत
उनको रास्ते में कहीं
सामने एक बूढ़ी औरत थी
पानी का घड़ा लिए
वो भी चला गया पास उसके
पानी पीने के लिए
बोला माते! पिला दो थोड़ा पानी
बहुत प्यास लगी है मुझे
वो बोली, मैं जानती नहीं हूं तुम्हें
पहले अपना परिचय दो मुझे
हूं मैं एक पथिक, माते!
मुझको अब पानी पिला दो
पथिक तो तुम हो नहीं सकते
कौन हो? मुझको सत्य बता दो
केवल दो ही पथिक है जग में
एक सूर्य और दूसरा चंद्रमा
कभी एक जगह नहीं रहते ये
चलते ही रहते है सूर्य और चंद्रमा
फिर बोला, हूं मैं एक मेहमान, माते!
मुझको अब तो पानी पिला दो
मेहमान तो तुम हो नहीं सकते
कौन हो? अभी भी सत्य बता दो
केवल दो ही मेहमान है जग में
एक धन और दूसरा यौवन
ये किसी के पास ज़्यादा नहीं ठहरते
बताओ? तुम धन हो या यौवन
बोला वो,हूं मैं सहनशील, माते!
मुझको अब पानी पिला दो
सहनशील तो तुम हो नहीं
कौन हो तुम? सत्य बता दो
केवल दो ही सहनशील है जग में
एक ये धरा और दूसरा पेड़
पापियों का बोझ भी ढोती है धरा
पत्थर मारने वाले को भी फल देता है पेड़
आने वाली थी अब मूर्छा की स्थिति
बोला फिर झल्लाकर,मैं हठी हूं, माते!
मुझको अब तो पानी पिला दो
बोली बूढ़ी, हठी तो तुम हो नहीं
कौन हो? अभी भी सत्य बता दो
केवल दो ही हठी है जग में
एक नाखून और दूसरा केश
जितनी बार भी तुम काटो
फिर बढ़ जाते है नाखून-केश
फिर हाथ जोड़कर वो बोला
हे माते! लगता है मूर्ख हूं मैं
मुझको अब तो पानी पिला दो
बुढ़िया बोली, मूर्ख तो तुम हो नहीं
कौन हो? अभी भी सत्य बता दो
केवल दो ही मूर्ख है इस जग में
एक राजा और दूसरा उसके दरबारी
अयोग्य होकर भी राजा करता है राज
और बेतुके तर्कों से करते उसकी प्रशंसा दरबारी
थक हार कर बुढ़िया के पैरों में
गिर गया वो विद्वान अब
बोला, अब तो पानी पिला दो
मूर्छित हो रहा हूं मैं तो अब
फिर बुढ़िया बोली उठो वत्स
विद्वान ने जब ऊपर देखा
साक्षात सरस्वती मां को, सामने देखा
फीकी पड़ गई उसकी ज्ञान की रेखा
बोली मां, आता है ज्ञान शिक्षा से
अहंकार नहीं करना चाहिए ज्ञान पर
अपने ज्ञान को उपलब्धि मानकर
कभी घमंड न करो अपने ज्ञान पर
हो गया था तुम्हें भी घमंड इस ज्ञान का
इसलिए आना पड़ा तुम्हें राह दिखाने को
न करना कभी घमंड अपने इस ज्ञान पर
तुम्हें इस बात का अहसास दिलाने को।