“जान बची तो लाखों पाए”
बात बहुत पुरानी नहीं है। 24 नवंबर 2018 की बात है। मैं अपने पति देव के साथ झुंझनू (राजस्थान ) से एक समारोह में भाग लेने के बाद जयपुर को लौट रही थी। जिस बस में हम यात्रा कर रहे थे वह राजस्थान रोडवेज की थी। जो ड्राइवर बस चला रहा था वह कुछ सुस्त व ज़िद्दी स्वभाव का लग रहा था। यद्यपि वह बस तो ठीक ठाक चला रहा था किन्तु अडियल व झगड़ालू दिखाई देता था और परिचालक से उसका तालमेल नहीं बैठ पा रहा था।
कुछ आगे जाने पर सीकर बस स्टैंड आया। सीकर से थोड़ी दूर निकलते ही उसने बस को एक ढाबे पर रोक दिया जहाँ चाय नाश्ते की सामग्री के अतिरिक्त शराब और माँसाहारी भोजन भी उपलब्ध था। संभवतः वह इस स्थान से पूर्व में ही वाकिफ था। यात्रियों के साथ वह भी नीचे उतरा। भीतर जा कर कुछ खाया व शराब पी इसके बाद तो वह खुद को किसी शहंशाह से कम नहीं गिन रहा था। वह झूमता झामता ढाबे के बाहर आया और ढाबे वाले से सिगरेट और जलाने के लिए माचिस मांगी। फिर जानबूझकर नीचे गिरा कर दूसरी माचिस मांगी और ढाबे वाले से ही माचिस जलाकर देने को कहा। ढाबे वाला शायद उसकी हरकतों से पहले से परिचित था। अतः उसने बात न बढ़ाने की गरज से बिना कुछ कहे उसकी सिगरेट जला दी। अब तो ड्राइवर महाशय शेर हो गये। इसके बाद ड्राइवर ढाबे वाले को झगड़े के लिए अनावश्यक रूप से उकसाता हुआ बोला –
तुझे पैसे दूँ क्या इसके?
ढाबे वाले ने कहा – “रहने दो भाई। कभी दिये हैं क्या जो आज दोगे ?” इतना सुनते ही ड्राइवर भड़का – “अच्छा बहुत अकड़ रहा है। आज के बाद तेरे ढाबे पर रोडवेज की कोई बस नहीं रुकेगी। तेरी तो मैं बारह बजा कर रखूँगा। समझता क्या है?”
इसी बीच ढाबे का एक वेटर बीचबचाव कराता हुआ बोला – “भाई चुपचाप चला जा वरना तेरा नशा दो मिनट में उतार दूंगा। बहुत देर से तेरा तमाशा चल रहा है।”
क्रमशः……..
(भाग-2)
इसी बीच आधे यात्री उतरकर भीड़ लगा चुके थे। हम में से एक यात्री जो आगे बैठा था वह आगे बढ़ कर ड्राइवर को खींच कर थप्पड़ मारते हुए बोला – “तू जब गाड़ी चलाने बैठा तब भी पिये हुए था फिर उतरते वक्त भी बीयर की एक बोतल पूरी पी कर उतरा है। चाहे तो आप लोग बोतल पड़ी हुई देख सकते हो। फिर तीसरी बार ढाबे में अंदर जा कर पी। नालायक तू खुद तो मरेगा सारे यात्रियों को भी मारेगा।”
इसके बाद तो यात्रियों ने उसकी पिटाई करके उसे गाड़ी ड्राइव करने से रोका।
लगभग आधी सवारियां नीचे उतर चुकी थीं। आधे यात्री व महिलाएँ व बच्चे बैठे थे।
एकाएक उस शराबी को सनक सूझी और वह तेजी से दौड़ कर ड्राइविंग सीट पर जा बैठा तथा बस स्टार्ट कर दी व तेज दौड़ कर बोला- “मैं सही चलाऊंगा। चिन्ता मत करो। मैं ही ले जाऊँगा।” और अंधेरे में अंधाधुंध बस दौड़ाई। हम सब यात्री भयभीत हो कर चिल्लाने लगे-“गाड़ी रोक! गाड़ी रोक!” किन्तु वह तो सनकी हो चुका था। अब तक आठ दस पुरुष यात्री उसे घेर कर बस रुकवाने का प्रयास करने लगे। उनकी सब में से एक आदमी खलासी का काम करता था। उसी ने आगे बढ़कर हिम्मत की और गाड़ी का गियर को ताकत लगा कर तोड़ डाला। बस तेज झटका खा कर रुक गयी। सारे यात्रियों की सांस में सांस आई। कंडक्टर व यात्रियों ने रोडवेज डिपो व पुलिस कंट्रोल रूम में कई फोन लगाए परन्तु एक भी अटेंड नहीं किया गया। बाद में कंडक्टर ने यात्रियों को बताया कि रोडवेज विभाग की नयी नीति के तहत यह ड्राइवर रोडवेज का कर्मचारी न हो कर एक अनुबंधित व प्राइवेट अप्रशिक्षित व्यक्ति था। इसीलिए इतना लापरवाह था।
खैर कंडक्टर ने रोडवेज की दूसरी दो बसों को रुकवा कर आधे आधे यात्रियों को उनमें शिफ्ट कर भेजा। हमारी जान में जान आई। हम 10बजे के बजाय रात एक बजे सकुशल घर पहुंचे। हमने इसी बीच इस घटना का ज़िक्र घर पर नहीं किया अन्यथा घर वालों को इंतजार करना भारी पड़ जाता। पहुंचने के बाद घरवालों को बताया तो सभी ने परमपिता परमेश्वर का धन्यवाद किया।
दूसरे दिन बच्चों ने भगवान् को प्रसाद चढ़ाया। भला हो उस खलासी का, जिसकी सूझ- बूझ से इतना बड़ा हादसा टला और 60-65 लोगों की जान बच पाई। ईश्वर उस भले आदमी को दीर्घायु करे।
इससे यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि शासन के इतने जिम्मेदार विभाग में नियमों की अनदेखी का भुगतान आम जनता अपनी जानें गंवा कर भी देना पड़ता है। यह बड़ी सोच का विषय है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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