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20 Aug 2017 · 1 min read

*** जान-अनजान ,खमोश दर्द ***

18.8.17 **** दोपहर **** 3.51

तुम्हें क्या पता जान ये मुहब्बत अनजान

रूह भी उलझ चुकी है मुहब्बत-अनजान

इसे इश्क की मेहरबानी कहूं या उल्फ़त

तेरा इश्क-इबादत हो गया है अनजान।।

?मधुप बैरागी

18.8.2017 **** दोपहर **** 3.07

तेरे ख़ामोश दर्द को अपनी जुबां से कह सकूं

मरता है इंसान पर मरमर के अब ना रह सकूं

काश ! कह सकूं ख़ुदा से अब और दर्द ना दे

जिसे सहते – सहते अब और ना मैं सह सकूं।।

?मधुप बैरागी

Language: Hindi
1 Like · 291 Views
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