जाने क्या-क्या कह गई, उनकी झुकी निग़ाह।
जाने क्या-क्या कह गई, उनकी झुकी निग़ाह।
स्याह रात में हो गया, दिल से हसीं गुनाह।
आफ़ताब ने खोल दिए, शब् के सारे राज़ –
बंद पलक में शर्म को, आख़िर मिली पनाह।
सुशील सरना
जाने क्या-क्या कह गई, उनकी झुकी निग़ाह।
स्याह रात में हो गया, दिल से हसीं गुनाह।
आफ़ताब ने खोल दिए, शब् के सारे राज़ –
बंद पलक में शर्म को, आख़िर मिली पनाह।
सुशील सरना