जाने कब पहुंचे तरक्की अब हमारे गांव में
जाने कब पहुंचे तरक्की अब हमारे गांव में।
रास्ता लंबा बहुत है और छाले पांव में।
कागजों पर बह रही है नहर और नदियां यहां।
खेत में सूखी हैं फसलें लोग डूबे नाव में।
हारने पर कोशिशें हैं जीतने की ख्वाहिशें।
जान की बाजी लगा दी हमने भी तो दांव में।
आग बरसाती हवा है दोपहर की धूप है।
आओ बैठे नीम बरगद पीपलों की छांव में।
गर्म मौसम,बद मिजाजी और तल्खी किस लिए।
प्यार का एहसास, ठंडक लाइए बर्ताव में।
क्या करें ऐसी तरक्की अपने बच्चों के लिए।
वह रहें अमेरिका जाकर हम रहें उन्नाव में।
एसी, कूलर और पंखे कुछ नहीं है काम के।
हर कोई ठहरा हुआ है अपने अपने ठांव में।
चैन सबका खो गया है,दूसरों का छीनकर।
सगी़र सब उलझे हुए हैं अपने-अपने दांव में।