मेरे पिंजरे का तोता
जाने कब जागे
कब सोता
मेरे पिंजरे का तोता |
हरे भरे पेड़ों पर बसता
पेड़ों के संग रंग की समता
लाल लाल कंठी वाला वो
उड़ आकाश दिखाता क्षमता
आज वही मन ही मन
गुमसुम रह दीखता है रोता
मेरे पिजरे का तोता |
पंख फुलाये ना टर्राये
पैरों से ना पंख खुजाए
पेट भरा है, लेकिन फिर भी
नहीं चैन से वह सो पाए
कभी एकटक कौतूहल गुमसे
पिंजरा देखे खोता खोता
मेरे पिंजरे का तोता |
पिंजरे के भीतर रह गुमसुम
मन बसाये मुक्ति की धुन
रह रह कर चक्कर काटे
गिनगिन कर दिनों को काटे
खाए न कुछ भी
पिये न कुछ भी
मेरे पिंजरे का तोता |
घर की शोभा माना जिसको
घर में पाया डरते उसको
दोष दूँ किस किस को इसका
खुद ही समझ न पाया जिसको |
हरी मिर्च जब देता पोता
पहले जैसा खुश ना होता
मेरे पिंजरे का तोता |