जानवर और मनुष्य पेज 06
मनुष्य में मानवता की संवेदना का मूल्य बहुत नीचे गिर गया है। चाहें मनुष्य कितनी भी वाही लूटता रहा हो।पर!वह मानव धर्म का पालन नही कर रहा है। वहीं कहानी दोहरा रहा है।कि बड़ी मछली छोटी मछली को अपना गिरास बनाती रहती है।हम भी छोटे मजदूरों का शोषण जारी रखना चाहते हैं।बस! मनुष्य यही सोच में डूबा हुआ है। इसलिए ही वह आत्मा का अनुभव नही कर सकता है।कि हम जानवरो के साथ कैसा व्यवहार करें । जिस जानवर को वह पालता है।बस उसी की देखरेख करता रहता है।अपनी जान सिर्फ जान है। बाकी जीव सब निर्जीव है। आखिर उसको ज्ञान क्यों नहीं होता है। हम केवल अपनी ही भूख मिटाने में लगे हुए हैं। अपना कर्तव्य और धर्म भूल जाते हैं।अगर इस पृथ्वी पर जानवर नहीं होते तो क्या मनुष्य अकेला रह सकता था। उसने जानवरो को अपना जीवन साथी चुना।और फिर कई रास्ते पृगति की ओर जाने लगे । उसने अपनी जिविका चलाने के लिए जानवरो का सहारा लिया।और अपनी आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार किया।।