जाती हुई सर्दियां
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक
अरूण अतृप्त
जाती हुई सर्दियां
सुबकियाँ भर भर के, लिपट लिपट के रो रहीं हैं दिसम्बर की मासूम, आखिरी रातें ।
सुबकियाँ भर भर के, लिपट लिपट के रो रहीं हैं दिसम्बर की मासूम, आखिरी रातें ।
जनवरी आने से पहले उन्हें इक बार प्यार कर लीजिए गले से लगा लीजिए।
फिर आयेगा मौका पूरे एक साल में, जनाब, फिर न कहना मिलना है आपसे हमको ऐ यार ।