Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Apr 2024 · 11 min read

*जाति मुक्ति रचना प्रतियोगिता 28 जनवरी 2007*

जाति मुक्ति रचना प्रतियोगिता 28 जनवरी 2007
————————————–
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
—————————————————-
सुन्दर लाल इण्टर कालेज, रामपुर ने अपने संस्थापक श्री रामप्रकाश सर्राफ की स्मृति में जातिमुक्ति रचना प्रतियोगिता का विद्यालय परिसर में दिनांक 28 जनवरी 2007 रविवार को आयोजन किया। संस्थापक की मृत्यु (दिनांक 26 दिसम्बर 2006) के पश्चात आयोजित की गई यह प्रथम प्रतियोगिता थी। इस रचना प्रतियोगिता में कक्षा 9 से 12 तक के रामपुर के विभिन्न विद्यालयों के 44 (चौवालिस) विद्यार्थियों ने भाग लिया। 22 छात्राऍं तथा 22 ही छात्र थे। सभी को प्रतियोगिता स्थल पर ही एक अधूरी कविता दी गई। इस अधूरी कविता को विद्यार्थियों को अपनी कल्पनाशीलता से मनवांछित आकार प्रदान करना था।

यह अपनी किस्म का एक अलग ही प्रयोग था। समाज में अभी तक जो कहानी प्रतियोगिताएं या कविता प्रतियोगिताएं होती रही हैं, उनमें विद्यार्थियों को रटी-रटाई सामग्री प्रतियोगिता कक्ष में आकर उड़ेल देना मात्र होता था। वे घर से कोई रचना रटकर आते थे और प्रतियोगिता में उसे ही आकर दिखा-भर देते थे। इसमें कल्पना या नवीनता या मौलिकता का कोई स्थान नहीं होता था। कई बार तो आयोजक ऐसी रचना प्रतियोगिताएं रखते हैं, जिनमें लेखक अपने घर पर बैठकर ही डाक से अपनी रचना भेज देते हैं। स्पष्ट है, ऐसी प्रतियोगिताओं में मौलिकता की आशा करना भी व्यर्थ होता है।

सच्ची और मौलिक प्रतिभाओं की तलाश का काम जाति मुक्ति रचना प्रतियोगिता से हुआ है। क्योंकि इस प्रतियोगिता में विद्यार्थियों को अधूरी रचना देने का काम भी प्रतियोगिता स्थल (विद्यालय) पर ही हुआ तथा इस अधूरी रचना को पूर्ण करने का कार्य भी प्रतियोगिता स्थल पर ही करना था, अतः ऐसे में नकल या दूसरों से सहयोग या किसी अन्य प्रकार से कोई गलत प्रक्रिया अपनाए जाने को कोई अवकाश नहीं मिल सकता था।

प्रतियोगिता का नामकरण जाति मुक्ति रचना प्रतियोगिता है। अर्थात जाति भेद से मुक्ति पर जोर ज्यादा दिया गया है। यूँ तो दहेज विरोध, शाकाहार तथा शराब बन्दी भी प्रतियोगिता के विषय के अन्तर्गत आते थे, तथापि सामाजिक पुनर्रचना के कार्य में जातिभेद मिटाने के कार्य को शीर्ष वरीयता दिए जाने के कारण रामप्रकाश जी की स्मृति में इस प्रतियोगिता का नाम जाति मुक्ति ही रखा गया। अपना समाज जिस प्रकार से जातिवाद से ग्रस्त है, सर्वत्र जातिगत प्रवृत्तियों का उभार देखने को मिल रहा है तथा जातीय उन्माद जिस प्रकार से अपने पूरे समाज में नाना प्रकार की विकृतियां पैदा कर रहा है, उसे देखते हुए जातिमुक्ति के विचार को आगे बढ़ाने की आवश्यकता बहुत ज्यादा बढ़ गई है।

नवयुवक ही हमारी आशाओं के एकमात्र केन्द्र हैं। हम उनसे ही यह आशा कर सकते हैं कि वे एक ऐसे समाज की रचना कर सकेंगे जिनमें जातिगत विभाजनों को कोई स्थान नहीं होगा। पुरानी पीढ़ी बूढ़ी हो गई है। वह यथास्थितिवाद की शिकार है। उसमें परिवर्तन लाने का उत्साह नहीं है। दूसरी ओर नवयुवकों की ओर हम एक ऐसी विशाल और विराट क्रान्ति लाने की अपेक्षाओं के साथ देख सकते हैं, जो समाज की रचना में आमूलचूल परिवर्तन कर सकें। इसलिए हमारे प्रयत्नों की दिशा यही होनी चाहिए कि जिसमें नवयुवकों को उत्साह, प्रेरणा तथा सामाजिक सुधारों के लिए बल मिले। नवयुवक ऐसी सोच रखते हैं कि समाज ईमानदारी और सच्चाई के साथ नए सिरे से स्थापित हो। वे आदर्शों को धरा पर उतारने के लिए बहुधा व्याकुल दीखते हैं। उनकी इसी चेतना को हमेंन केवल जीवित रखना है, अपितु उसे और भी धारदार बनाना है। समाज कितना बदलेगा या समाज हमारे प्रयत्नों से कितना बदल रहा है यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्व इस बात का है कि हमारे हृदयों में परिवर्तन की चाहत कितनी तीव्र है तथा हम हृदय की कितनी गहराइयों से उस परिवर्तन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बेचैन हैं। यही बेचैनी हमारे रास्तों को खोलेगी। युवावस्था की दहलीज पर खड़े ऊर्जस्वी हृदयों की ओर हम आशा के साथ देख रहे हैं और जातिमुक्ति रचना प्रतियोगिता में यह आशा व्यर्थ नहीं गई।

इस प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार असमां शाहिद नामक छात्रा ने जीता है, जो स्थानीय सनवे सीनियर सेकेन्डरी स्कूल की कक्षा 12 की छात्रा हैं। अधूरी रचना को पूर्णता प्रदान करने की सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि हम अधूरेपन को जहाँ से पकड़ें, उसे वहीं से पूर्णता प्रदान करने का कार्य अगली पंक्ति में कर दें। असमां शाहिद ने यह कार्य बहुत तत्परता से कर दिखाया है। अधूरी कविता की अन्तिम पंक्तियां थीं- “आओ! वह दिन लाएं / जब हम जाति की कैद से बाहर आएं / खुद को मनुष्य कहें”

एक कुशल कवयित्री का परिचय देते हुए असमां शाहिद ने “खुद को मनुष्य कहें” के आगे तत्काल यह पंक्तियां जोड़कर काव्य रचना आरम्भ की “और जाति भेद न सहें।” इस प्रकार कविता की अधूरी पंक्ति पूर्ण हो गई “खुद को मनुष्य कहें / और जाति भेद न सहें।” यही काव्य कौशल है। इसके आगे कवयित्री का कथन है “मानव होना काफी नहीं / मानवता कहीं दिखती नहीं/ईश्वर ने जब बनाया एक / क्यों बन गईं फिर जातियां अनेक” कविता आरम्भ करते ही यहाँ रफ्तार पकड़ लेती है और बौद्धिक चिन्तन की गहराइयों में
उतरने लगती है। कवयित्री किसी को रूप रंग से मनुष्य दीखने भर को पर्याप्त नहीं मानती, अपितु उसके भीतर मनुष्यता का भाव विद्यमान होना वह अनिवार्य मानती है।

समाज जीवन की कुरूपता का चित्र खींचने का कार्य कवयित्री ने बड़ी कुशलता से किया है। उसके मतानुसार ऊँची जातियां अधिक दोषी हैं। वह लिखती हैं “जातियाँ ऊँची करती शोषण / एकता ही है अमूल्य आभूषण / जातिवाद ने खींच दी हैं दीवारें / एकता अब रहे किसके सहारे ।”

फिर कविता में एक मोड़ आता है और इस मोड़ पर हम कवयित्री असमां शाहिद को स्थितियों से जूझने तथा उन्हें बदल देने के लिए प्रयत्न करते हुए देखते हैं। कवयित्री कह उठती है “मिटा दो लकीरें जातिवाद की / चमका दो किरण इत्तेहाद की/कर दो विनाश भेद का हे सपूतों / मिटा दो कलंक भेद का हे सपूतों/सिखा दो सबक एकता का सबको / पहुँचा दो एकता का पैगाम नभ को/कह दो नभ से बरसाए अमन और भाईचारा / न मारा जाए जातिवाद के कारण अब कोई बेचारा।”

किसी भी आदर्शवादी कविता का प्राण उसकी अन्तिम पंक्तियां होती हैं। इनमें रचयिता कोई प्रण लेता है, संकल्प लेता है, प्रतिज्ञा करता है अथवा आह्वान करता है। असमां शाहिद की कविता का समापन इस दृष्टि से बहुत प्राणवान है। देखिए – “आओ संकल्प करें, हाथ बढ़ाएं हम/न होगा जातिवाद दानव का अब जन्म/तोड़ दो वह दीवारें जो उसनें खीचीं / मिटा दो बुराइयाँ जो उसने सीचीं।”

बहुत सरल तथा आम बोलचाल की भाषा में ऊँचे दर्जे के विचारों को रख पाना एक बड़ी बात होती है। कठिन शब्दों का प्रयोग हमें बड़ा कवि नहीं बनाता बल्कि आसान और समझ में आने वाले शब्दों से बड़ी-बड़ी बातें कह देने की कला ही हमें एक सच्चा और अच्छा कलाकार बनाती है। असमां शाहिद की कविता में यह गुण भरपूर मात्रा में है। उनमें सचमुच सामाजिक भेदभावों के विरूद्ध एक तड़प उठती हुई दीखती है तथा उनकी कविता में हृदय की गहराइयों से मनुष्यता को विभाजित करने वाली प्रवृत्तियों के विरूद्ध संघर्ष का स्वर प्रकट हो रहा है। वह निश्चय ही एक समर्थ कवयित्री हैं।

जैन इण्टर कालेज के कक्षा 11 के छात्र ओ.सी. शर्मा काव्य कौशल में किसी से कम नहीं हैं। एक कुशल कवि का परिचय देते हुए उन्होंने “खुद को मनुष्य कहें” – इस वाक्यांश को इस प्रकार सुन्दरता से पूर्ण किया है – “स्वयं ही स्वयं से संतुष्ट रहें।” श्री शर्मा की खूबी उनका शब्द कौशल है। देखिए कितने सुन्दर शब्दों का प्रयोग वह करते हैं। ऐसा लगता है मानों कोई अनुभवी और सिद्ध कवि लिख रहा है। झरने से बहते हुए संगीत की तरह एक अद्भुत अनुभव पाठक को कराने में सर्वथा समर्थ हैं ये पंक्तियां “जातिवाद एक अभिशाप-सा है/एक धीमा जहर है, ताप-सा है/नहीं तृप्ति आनन्द की जाति भेद में / जाति…! मानों बौछार है दुख की मेघ में।”

जाति भेद से मुक्ति के लिए आह्वान करते हुए समर्थ कवि ओ.पी. शर्मा ने ठीक ही लिखा है- “जाति मुक्ति के प्रयत्न यों कीजिए/न हावी हों जातियाँ फिर कभी, तनिक तो सीखिए।”

काव्य का एक गुण यह होता है कि कवि बहुत बार अपने हृदय की गहराइयों में ऐसा खो जाता है कि उसे स्वयं यह ध्यान नहीं रहता कि वह किन, शब्दों के समूह को प्रयोग में ला रहा है। ऐसे में पाठकों के सामने एक बड़ी चुनौती यह हो जाती है कि वे कवि की रचना प्रक्रिया को समझें तथा उसके शब्दों को गहराई से जानने का प्रयत्न करें। ओ.सी. शर्मा की काव्य प्रतिभा इसी कोटि की हैं। उनकी खूबी यह है कि वह काव्यानन्द के लिए पाठकों को थोड़ी समझ विकसित करने के लिए बाध्य कर देते हैं। यह कौशल वरिष्ठ कवियों के ही बस की बात होती है।

सुन्दर लाल इण्टर कालेज के कक्षा 12 के दीप कुमार शर्मा ने प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त किया है। उनकी प्रथम पंक्ति इस प्रकार है “मानवता को हम फिर से उज्ज्वल बनाएं / जातिवाद को समाप्त कर सभी एक हो जाएं” फिर वह लिखते हैं “आओ! हम लाएं फिर से वह दिन / जब जन्मे थे यहाँ राम और कृष्ण/साकार करें बापू का सपना / जातिवाद से मुक्त हो देश अपना।”

उपरोक्त पंक्तियों में गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा के बिन्दु तलाशने का कार्य कवि ने किया है। महात्मा गांधी, राम और कृष्ण का श्रद्धापूर्वक स्मरण करके कवि उनके बताए रास्ते पर चलने का आह्वान कर रहा है। इतिहास को हम दो प्रकार से देखते हैं। एक वह दृष्टि है, जिसमें हम इतिहास को नफरत की निगाह से देखते हैं तथा उसमें सुधार की दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं। दूसरी दृष्टि वह है जिसमें हम इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ खोलते हैं तथा उन पृष्ठों को पढ़कर कतिपय प्रेरणाएं प्राप्त करते हैं। कवि दीप कुमार शर्मा ने दोनों ही दृष्टियों से इतिहास को देखा है, तभी तो वह इतिहास की उन परम्पराओं को बदलकर एक नए और बदले हुए इन्सान को गढ़ने की बात भी कहते हैं, जो जातिवाद से मुक्त होगा। देखिए कितनी सुन्दर पंक्तियां हैं “मानवता का पाठ पढ़कर बदलें हर इन्सान को / तभी चैन मिलेगा भगवान को / क्योंकि उसके बनाए मनुष्य ने तोड़ दी जाति की जंजीर!”

भ्रष्ट नेताओं के स्थान पर देशभक्तों को देश की बागडोर सौंपने की आवश्यकता का प्रतिपादन भी दीप कुमार शर्मा अवश्य करते हैं, किन्तु उनका ध्येय यही है कि इससे वे नेतागण जातिवाद पर भी चोट कर सकते हैं। देखिए कवि की पंक्तियां – “अगर देश को आगे लाना है/ तो पहले भ्रष्ट नेताओं को हमें भगाना है/ और उस कुर्सी पर किसी देशभक्त को बिठाना है। तभी बढ़ेगी प्रगति की रफ्तार / जाति-पांति पर होगा तभी वार”।

वास्तव में भ्रष्ट नेताओं से किसी भी सुधार की आशा नहीं की जा सकती। वे तो केवल अपने आर्थिक हितो की रक्षा करने तक ही सीमित रहते हैं तथा देश-समाज की किसी भी समस्या के निदान के प्रति लापरवाह ही रहते हैं। कवि की सोच जायज है तथा उसमें राजनीतिक चेतना का बड़ा अंश विद्यमान है। प्रस्तुत कविता से यह आशा की जा सकती है कि कवि दीप कुमार शर्मा की राजनीतिक चेतना हमारे समाज को ईमानदारी तथा सदाचार पर आधारित प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाने के लिए अपेक्षित जमीन तैयार करेगी। वर्तमान समय में राजनेता जातिवाद को या तो कोई बुराई मानते ही नहीं हैं या फिर अगर इसे बुराई मानते भी हैं तो इस बुराई को समाप्त करने या इससे जूझने के लिए कतई तैयार नहीं होते। उनके लिए यह घाटे का सौदा लगता है। वे मानते हैं कि इस तरह की चीजों से लडने में कोई फायदा नहीं है।

इस जाति मुक्ति रचना प्रतियोगिता में कुछ ऐसी कविताएं भी रची गई हैं, जो भीड़ से हटकर अपनी एक अलग ही पहचान बना रही हैं। ये कविताएं हमें आकृष्ट करती हैं और हम इनकी सराहना किए बिना नहीं रह सकते। इस नाते इन कविताओं को विशेष प्रोत्साहन पुरस्कार की श्रेणी में लाना जरूरी हो गया। अगर इन कविताओं को नत मस्तक होकर प्रणाम नहीं किया जाता तो रचना प्रतियोगिता तो भले ही पूरी हो जाती किन्तु नई प्रतिभाओं की खोज तथा उन्हें बधाई देने का कार्य अपूर्ण ही रह जाता। संयोगवश यह तीनों कविताएं राजकीय खुर्शीद कन्या इण्टर कालेज की तीन छात्राओं ने रची हैं। कक्षा 12 की आस्था, कक्षा 11 की नूपुर गुप्ता तथा कक्षा 12 की कृतिका सिंह की रचनाएं निश्चय ही उच्च कोटि की रचनाएं हैं।

कवयित्री आस्था लिखती हैं “खुद को मनुष्य कहें और बतलाएं कि जब ईश्वर एक है/तो क्यों, उसके रूप अनेक हैं/ इस सच्चाई को जानें / और सबको अपना भाई बन्धु मानें।” आस्था ने कविता की अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार रची हैं- “आओ! एक ऐसा दिन लाएं / जब हम भी सूर्य और चन्द्रमा बन जाएं / जाति का भेद मिटाएं / और खुद को एक श्रेष्ठ मनुष्य कहलाएं।”

कुमारी आस्था की कविता वैचारिकता से ओतप्रोत है। वह समानता के लिए कृतसंकल्प हैं। ईश्वर तथा उसकी सृष्टि को आधार मानकर वह इस विचार का प्रतिपादन करती हैं कि ईश्वर ने मनुष्यों में कोई भेदभाव नहीं किया है, फिर मनुष्य ने भेदभाव क्यों आरम्भ कर दिया। कविता में लयात्मकता को महसूस भलीभांति किया जा सकता है।

कुमारी कृतिका सिंह की कविता की अन्तिम पंक्तियां विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं देखिए “साथ रहें मनुष्य हम सारे/न फिर लें कभी जाति का नाम/बनाएं सबसे मनुष्य का रिश्ता/मिल जुलकर करें हम सारे काम/याद रखें कि इन जाति से / हमें न कुछ मिल पाएगा / जातिवाद का अन्त ही विकास हमारा कहलाएगा।”

उपरोक्त काव्यांश में जातिवाद के खिलाफ मनुष्यतावादी विचारधारा का उभार स्पष्ट रूप से देखने में आ रहा है। कवयित्री ने सफलतापूर्वक मनुष्य की आध् धारभूत एकता को अपनी काव्य चेतना के केन्द्र में रखा है तथा स्पष्टतः यह मत व्यक्त किया है कि जातिवाद की समाप्ति से ही वास्तविक विकास हो पाएगा। सीधी सपाट वैचारिक अभिव्यक्ति कृतिका सिंह के काव्य की विशेषता है। वह उलझाती नहीं है। उनकी समझ स्पष्ट है। अच्छी कविताएं सुस्पष्ट वैचारिकता की गहराई मे उतरकर ही प्राप्त की जा सकती है कुमारी कृतिका सिंह की रचना ऐसी ही कोटि की है।

कवयित्री नूपुर गुप्ता की कविता की प्रारम्भिक पंक्तियां ही ध्यान आकृष्ट करती हैं। देखिए – “और मानव जाति की श्रेष्ठता बताएं / क्यों हम जातिवृत्त की / इस तुच्छ प्रवृत्ति में पड़े हैं/ हम ही तो पृथ्वी के श्रेष्ठ प्राणी हैं / क्यों न इसे छोड़ उन्नति के पथ पर बढ़ें हम /….. क्यों इस धरती ही पर रहकर स्वयं पशु प्रवृत्ति में पड़ें हम।”

कवयित्री ने बहुत साहसपूर्वक जातिवादिता को पशु प्रवृत्ति की श्रेणी में रखा है। वह मनुष्यता की आराधना करती हैं तथा मनुष्य को धरती का इस नाते श्रेष्ठतम प्राणी मानती हैं कि वह मनुष्य होने के नाते मनुष्यता का व्यवहार करने के योग्य हैं। साफ सुथरी भाषा तथा बहुत स्पष्टवादिता से कवयित्री जातिवादिता के समूचे चक्र को जातिवृत्त कहकर इसे ठुकरा देती है। वास्तव में जातिवाद को बहुत कठोरतापूर्वक अस्वीकार करने की आवश्यकता है। नूपुर गुप्ता की कविता इसी कवि धर्म का निर्वहन करती है।

संक्षेप में जाति मुक्ति रचना प्रतियोगिता 28 जनवरी 2007 द्वारा रामपुर के ऐसे छह साहित्यिक व्यक्तियों की तलाश का कार्य हुआ है, जो हर प्रकार से भारत के साहित्याकाश के उज्ज्वल नक्षत्र बनने की असंदिग्ध रूप से क्षमता रखते हैं। इन प्रतिनिधि कवियों और उनकी कविताओं की जातिवाद विरोधी चेतना बहुत स्वागत योग्य है। ये कवि और कवयित्रियां ही आने वाले कल में अपेक्षित बदलाव लाने के अग्रदूत की भूमिका निभाएंगे। इनकी सामाजिक परिवर्तनों की अभिलाषाएं नमन करने योग्य हैं। यह मनुष्यतावादी रचनाकार हैं तथा वास्तविक मानवतावादी समाज की रचना ही निश्चय ही इनकी रचनाशीलता का पवित्र लक्ष्य है। इन रचनाकारों और इनकी रचनाओं को बहुत-बहुत प्रणाम।

इस प्रतियोगिता के आयोजन के लिए प्रधानाचार्य बद्री प्रसाद गुप्ता तथा प्रतियोगिता के संयोजक हिन्दी प्रवक्ता ब्रजराम मौर्य बधाई के पात्र हैं।

84 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
यूं कौन जानता है यहां हमें,
यूं कौन जानता है यहां हमें,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
You can't skip chapters, that's not how life works. You have
You can't skip chapters, that's not how life works. You have
पूर्वार्थ
राज़ बता कर जाते
राज़ बता कर जाते
Monika Arora
*चिड़िया और साइकिल (बाल कविता)*
*चिड़िया और साइकिल (बाल कविता)*
Ravi Prakash
"लोगों की सोच"
Yogendra Chaturwedi
हास्य गीत
हास्य गीत
*प्रणय*
"प्रकृति की ओर लौटो"
Dr. Kishan tandon kranti
यदि समुद्र का पानी खारा न होता।
यदि समुद्र का पानी खारा न होता।
Rj Anand Prajapati
*Lesser expectations*
*Lesser expectations*
Poonam Matia
ऐसी प्रीत कहीं ना पाई
ऐसी प्रीत कहीं ना पाई
Harminder Kaur
सुकून
सुकून
अखिलेश 'अखिल'
सफ़र ठहरी नहीं अभी पड़ाव और है
सफ़र ठहरी नहीं अभी पड़ाव और है
Koमल कुmari
Stop use of Polythene-plastic
Stop use of Polythene-plastic
Tushar Jagawat
इत्तिफ़ाक़न मिला नहीं होता।
इत्तिफ़ाक़न मिला नहीं होता।
सत्य कुमार प्रेमी
विश्रान्ति.
विश्रान्ति.
Heera S
Love's Burden
Love's Burden
Vedha Singh
3225.*पूर्णिका*
3225.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
काम न आये
काम न आये
Dr fauzia Naseem shad
नव वर्ष हमारे आए हैं
नव वर्ष हमारे आए हैं
Er.Navaneet R Shandily
Safar : Classmates to Soulmates
Safar : Classmates to Soulmates
Prathmesh Yelne
दौलत -दौलत ना करें (प्यासा के कुंडलियां)
दौलत -दौलत ना करें (प्यासा के कुंडलियां)
Vijay kumar Pandey
जिदंगी हर कदम एक नयी जंग है,
जिदंगी हर कदम एक नयी जंग है,
Sunil Maheshwari
क्या हसीन इतफाक है
क्या हसीन इतफाक है
shabina. Naaz
❤️ DR ARUN KUMAR SHASTRI ❤️
❤️ DR ARUN KUMAR SHASTRI ❤️
DR ARUN KUMAR SHASTRI
*मधु मालती*
*मधु मालती*
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
शरद काल
शरद काल
Ratan Kirtaniya
चाय ही पी लेते हैं
चाय ही पी लेते हैं
Ghanshyam Poddar
बस तुम्हें मैं यें बताना चाहता हूं .....
बस तुम्हें मैं यें बताना चाहता हूं .....
Keshav kishor Kumar
हुआ है अच्छा ही, उनके लिए तो
हुआ है अच्छा ही, उनके लिए तो
gurudeenverma198
"सत्य अमर है"
Ekta chitrangini
Loading...